कालिदास के नाट्य कौशल का उत्कृर्ष है, अभिज्ञानशाकुन्तलम् - डॉ. पुरु दाधीच
कालिदास व्याख्यानमाला का अंतिम सत्र सम्पन्न
उज्जैन/अ.भा.कालिदास समारोह, 2017 के अंतर्गत कालिदास व्याख्यानमाला के अंतिम सत्र में ‘‘कालिदास की रंग योजना’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए सुप्रसिद्ध नृत्याचार्य डॉ. पुरु दाधीच ने कहा कि कालिदास नाटक को आँखों के सामने हुआ यज्ञ मानते है। नाट्यशास्त्र में पूर्वरंग विधि के 19 प्रकरणों की चर्चा है। अलग-अलग रस के लिए नाट्य मंचन का समय भी भरतमुनि ने अलग-अलग बताया है। नाट्यमंचन नटाश्रित होता है। नाटक का साधन संगीत है। इसलिए उसे नाटक की शैया भी भरत ने कहा है। नट का केवल अभिनेता ही नहीं गायक और नर्तक होना भी जरूरी है। रस और भाव की व्यंजना ही नाटक है। आहार्य अभिनय से कथानक के मंचन में बहुत सहयोग मिलता है।
पारम्परिक संस्कृत नाट्य परम्परा से ही शास्त्रीय नृत्य पद्धतियां निकली हैं। प्रदर्शन और प्रशिक्षण दोनों ही कलाओं में जो निष्णात है वही श्रेष्ठ आचार्य (गुरु) होता है। नायक-नायिका के मिलन के लिए भरतमुनि ने नाटक में नृत्य योजना रखी है। ताल और लय के साथ जो भावाभिव्यक्ति होती है, वही नृत्य है। कालिदास ऐसे विलक्षण रचनाकार है जो पुरुष विरह का भी वर्णन करते है। शाकुन्तलम् कालिदास के नाट्य कौशल का उत्कर्ष है। इस नाटक में सात्विक भाव स्वतः प्रस्फुटित होते हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने कहा कि ‘‘रंग’’ अपने आप में एक बहु आयामी और व्यापक शब्द है। यज्ञ के कर्मकाण्ड से ही नाटक निकल आया है। हमारी परम्परा में नाट्य शास्त्र को पंचमवेद कहा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में एक पुरा अध्याय में नाट्य विधान का उल्लेख है। भगवान शिव नृत्य और नाटक के आदि देवता माने गए है।
कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों ने वाग्देवी के चित्र के समक्ष दीप-दीपन और माल्यार्पण किया । अतिथियों का स्वागत अकादमी के निदेशक श्री आनन्द सिन्हा ने किया।
व्याख्यान संत्र का संचालन डॉ. शैलेन्द्र पाराशर ने किया तथा आभार अकादमी के सहायक निदेशक डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने माना।