संपूर्ण ब्रह्मांड के संगीत के उद्गम केंद्र ध्रुपद का गायन पृथ्वी के नाभि केंद्र में हुआ
एक मंदबुद्धि के महाकवि कालिदास बनने के रोचक सफर का मंचन हुआ
कालिदास समारोह की चौथी शाम दर्शकों से रूबरू हुए कालिदास
उज्जैन | सात दिवसीय अखिल भारतीय कालिदास समारोह की चौथी संध्या पर स्वयं महाकवि कालिदास कलाप्रेमी दर्शकों से रूबरू हुए | इस सांस्कृतिक संध्या में सर्वप्रथम वाराणसी के प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ श्री पल्लब दास द्वारा ध्रुपद गायन किया गया | इसके पश्चात कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन के द्वारा स्थानीय मालवी बोली में कालिदास चरित नाटक का मंचन किया गया |
दर्शकों ने शास्त्रीय संगीत के उद्गम केंद्र ध्रुपद गायन और उसके पश्चात स्थानीय मालवी बोली में कालिदास के जीवन में आए अत्यंत अहम मोड, जिसके कारण में महाकवि बने का भाव विभोर होकर आनंद लिया |
सर्वप्रथम श्री पल्लब दास द्वारा ध्रुपद गायन की प्रस्तुति दी गई | प्रस्तुति के पूर्व उन्होंने चर्चा के दौरान जानकारी दी की ध्रुपद गायन संपूर्ण ब्रह्मांड के संगीत का उद्गम केंद्र है और यह बड़े ही हर्ष की बात है कि आज यह गायन पृथ्वी के नाभि केंद्र उज्जैन में किया जाएगा | ध्रुपद का मूलमंत्र ओम से प्रारंभ और ओम पर ही समाप्ति है, क्योंकि पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति भी वेदों के अनुसार ओम से ही हुई है | यह नाद विधा की गायकी है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के संगीत को संचालित करता है | ध्रुपद पहले संस्कृत में ही गाया जाता था लेकिन बाद में विभिन्न भाषाओं में इसका गायन किया जाने लगा, ताकि आमजन भी इसे आसानी से समझ सकें | ध्रुपद का अर्थ है - जैसे ध्रुव तारा हमेशा उत्तर दिशा में ही होता है, यह कभी अपना स्थान नहीं छोड़ता, वैसे ही ध्रुपद गायन नित्य है, अटल है और सत्य है |
श्री पल्लव दास ने ध्रुपद गायन के अंतर्गत राग कल्याण, राग हंस किंकिणी और हर हर भूतनाथ का गायन किया | इनकी संगत तुंबुरा में सुश्री चंचल और सुश्री रेणु तिवारी ने की तथा मृदंगम पर श्री अंकित ने की |
ध्रुपद गायन की मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति के बाद डॉ भगवती लाल राजपुरोहित द्वारा लिखित कालिदास चरित नाट्य का मंचन किया गया | इसका निर्देशन श्री सतीश दवे ने किया | नाटक के पहले द्रश्य में ही भगवान महाकाल की पालकी मंच पर आई जिसे देख कर दर्शकों ने जय महाकाल बोलते हुए स्वागत किया |
इसके बाद नाटक में दिखाया गया कि सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक आचार्य वररुचि वन में जाते हैं तथा वहां पर अपनी सखियों के साथ मौजूद राजकुमारी विद्योत्तमा उनका उपहास करती हैं, जिससे उनका अपमान होता है और आचार्य वररुचि राजकुमारी तिलोत्तमा के घमंड को तोड़ने के लिए एक मंदबुद्धि चरवाहे से उनका विवाह करने का प्रण लेते हैं |
परंतु राजकुमारी के साथ शास्त्रार्थ के समय मंदबुद्धि चरवाहे की असलियत सबके सामने आ जाती है | इसके पश्चात आचार्य वररुचि उसे मां गढ़कालिका की उपासना करने के लिए कहते हैं | मां गढ़कालिका की विशेष कृपा उस मंद बुद्धि पर होती है और वह बाद में देश के विभिन्न क्षेत्रों में समय बिताकर और ऋषि मुनियों के संपर्क में रहकर महाकवि कालिदास बन जाते हैं |
इस नाटक का मंचन मालवी भाषा में इतनी सरलता से दर्शकों के समक्ष किया गया कि वे पूरे मंचन के दौरान इससे जुड़े रहे | सफल निर्देशन और कलाकारों के श्रेष्ठ अभिनय ने अंत तक दर्शकों को बांधे रखा |कालिदास का किरदार हर्षित शर्मा, सूत्रधार दुर्गाशंकर सूर्यवंशी, वररुचि का किरदार शिरीष सत्यप्रेमी और विद्योत्तमा का किरदार विशाखा शाक्य ने निभाया |