कम पानी व कम लागत में ज्यादा लाभ देने वाली फसल है सरसो
उज्जैन @ सरसो रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है, जो कृषकों में बहुत लोकप्रिय होती जा रही है। इसकी वजह ये है कि कम पानी व कम लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा सरसो कृषक को ज्यादा लाभ देती है। इस रबी मौसम में कृषि विभाग द्वारा किसानों को ज्यादा रकबे में सरसो की फसल लेने का सुझाव दिया गया है।
कृषि विभाग ने कृषकों को सुझाव दिया है कि वे सरसो की जवाहर सरसो-2, जवाहर सरसो-3, राज विजय सरसो-2, कोरल-432, सीएस-56, नवगोल्ड (पीजी सरसो), एनआरसीएचबी-101, पूसा सरसो-21, पूसा सरसो-27, आरजीएम-73 के अलावा आशीर्वाद, माया जैसी किस्में ले सकते हैं। फसल चक्र यह है कि जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन हैं, उन क्षेत्रों में सरसो की बोवनी के पूर्व खरीफ में खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिये, सघनता बढ़ाने हेतु अन्य फसलों के क्रम में इसे सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। इसकी खेती से भूमि एवं आने वाली फसल के उत्पादन पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
सरसो को अन्य फसलों के साथ अन्तरवर्ती फसल के रूप में लिया जा सकता है। इसको चने के साथ ले सकते हैं। सरसो की एक कतार तथा चने की नौ कतार के अनुपात में बोवनी करना लाभदायक होता है। इसी तरह मसूर के साथ भी इसी अनुपात में ले सकते हैं। कम पानी या असिंचित गेहूं की सरसो के साथ अन्तरवर्ती खेती का भी लाभ काफी होता है। इन्हें भी एक कतार सरसो तथा 9 कतार गेहूं के साथ बोवनी करें। कृषि वैज्ञानिकों ने इसके बीजशोधन के बारे में बताया है कि श्वेत किट एवं मृदुरोमिलआसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एमएसडी-35) 6 ग्राम एवं तना सड़न या तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेंडाजिम 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिये। इसकी खेती में भूमि का चुनाव महत्वपूर्ण है। दोमट या बलुई भूमि जिसमें जल का अच्छा निकास हो, अधिक उपयुक्त है। अगर पानी के निकास का समुचित प्रबंध न हो तो प्रत्येक वर्ष सरसो लेने से पूर्व ढेंचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिये।