किसान अंतरवर्तीय फसले लें
उज्जैन । किसान अंतरवर्तीय खेती करें। किसान फसल नुकसानी की स्थिति में इससे भरपाई आसानी से कर सकते हैं। इस पद्धति में किसान को दो या दो से अधिक फसलें एक ही भूमि पर एक साथ उगाना होता है। इस पद्धति को अंतरवर्तीय फसल पद्धति कहते हैं।
उप संचालक कृषि ने बताया कि अंतरवर्तीय खेती के माध्यम से किसान विपरीत परिस्थितियों में एक फसल में नुकसान होने पर दूसरे फसल से नुकसान की आंशिक पूर्ति कर सकते हैं। इसके द्वारा फसल सघनता बढ़ाई जा सकती है और कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिये अंतरवर्तीय फसल पद्धति कारगर प्रयास है।
अंतरवर्तीय फसल पद्धति द्वारा प्रति इकाई क्षेत्रफल में एक फसल की तुलना में ज्यादा लाभ प्राप्त होता है। इस पद्धति में दो या दो से अधिक फसलें पंक्तियों में बोई जाकर आपदा प्रबंधन में दूसरी फसल का संरक्षण होता है। इस फसल पद्धति के माध्यम से असामान्य परिस्थितियों में जैसे कम वर्षा, कीट व्याधि के अत्यधिक प्रयोग से होने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है। यह पद्धति मृदा उर्वरता और मृदा कटाव को नियंत्रित करती है। अंतरवर्तीय पद्धति में दलहनी फसल के रूप में एक फसल ली जाती है, जो कि दूसरी फसल एवं आगामी मौसम की फसल के लिये अतिरिक्त पोषक तत्व उपलब्ध कराती है। अंतरवर्तीय फसल पद्धति में अलग-अलग ऊँचाई की फसलों का चयन करने से दोनों फसलों को पर्याप्त मात्रा में हवा और प्रकाश मिलता है, जिससे उत्पादन वृद्धि होती है।
खरीफ फसल के अंतर्गत अंतरवर्तीय फसल में मक्का के साथ सोयाबीन, कपास सोयाबीन, सोयाबीन अरहर, मक्का कपास, मक्का मूँग, अरहर उड़द, अरहर मक्का, तिल उड़द, तिर और मूंग की बोवाई की जा सकती है। इसी प्रकार रबी फसलों में चने के साथ सरसों, गन्ना चना, गन्ना मूँग, गन्ना धनिया, सरसों मसूर की खेती अंतरवर्तीय फसलों के रूप में की जा सकती है।