नागपंचमी के अवसर पर आज दोपहर 12 बजे होगा शासकीय पूजन
उज्जैन । 28 जुलाई को दोपहर 12 बजे कलेक्टर श्री संकेत भोंडवे पूरे विधि-विधान से भगवान नागचंद्रेश्वर एवं नागचंद्रेश्वर महादेव मन्दिर में शासकीय पूजन करेंगे। पूजन महन्त श्री प्रकाशपुरी करवायेंगे।
श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर
हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
पौराणिक मान्यता
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है।
महाकाल मन्दिर के सूत्र बताते हैं कि भगवान नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा परमारकालीन है। महाकाल मन्दिर में स्थापित शिवलिंग की सुरक्षा के लिये जब शिखर का निर्माण किया गया, उस समय गर्भगृह के ऊपर शिवलिंग की स्थापना की गई, जिसका नाम ऊंकार रखा गया। इसी प्रकार ऊंकार मन्दिर के ऊपर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति की स्थापना की गई। मूल रूप से नागचंद्रेश्वर की मूर्ति नेपाल से लाई गई थी। चूंकि महाकाल मन्दिर का क्षेत्र चारों ओर से वन से घिरा था, इसलिये सुरक्षा की दृष्टि से संभवत: इस प्रकार का निर्माण कार्य किया गया। गहन वन क्षेत्र में होने से सामान्य रूप से भक्त ऊपर दर्शन करने नहीं जाते थे, इसलिये वर्ष में एक बार नागचंद्रेश्वर के मन्दिर को खोलकर वहां साफ-सफाई एवं पूजा-अर्चना की जाती थी। बाद में इसने परम्परा का रूप ले लिया और वर्ष में एक बार नागचंद्रेश्वर भगवान के पट खुलने लगे।