सभी पापों का मूल हिंसा है, उससे बचना चाहिये- आचार्यश्री हर्षसागरजी
उज्जैन @ सभी पापों का मूल हिंसा है, उससे बचना चाहिये। जो हिंसा हम चर्मचक्षु से नहीं देख सकते है उसे केवली आत्मा ने खुद के ज्ञान से देखकर हमे सचेत किया है। उन्होंने हमें दुर्गति से बचाने का मार्ग बताया। यह विचार श्री हीर विजयसूरि बड़ा उपाश्रय खाराकुआं में गच्छाधिपति दौलतसागरजी के सानिध्य में आचार्यश्री हर्षसागरजी ने दसवे आगम शास्त्र की विवेचना के दौरान व्यक्त किये। जैन धर्मावलंबियों की जीवनचर्या आगम पर आधारित है। आचार्यश्री प्रतिदिन एक-एक आगम की विस्तृत विवेचना कर रहे हैं। यह पहला अवसर है कि जब समाजजनों को पूरे 45 आगम सुनने का अवसर मिला है। शुक्रवार को आचार्यश्री ने प्रश्न व्याकरण आगम के 1300 श्लोक का वर्णन करते हुए कहा कि कुविचार, खराब वाणी द्वारा कर्म आए तो उसे आश्रव कहा जाता है तथा धर्म क्रिया, साधना, आराधना के माध्यम से कर्म को रोका जाए तो उसे संवर कहते हैं। अहिंसा, झूठ, चोरी, अब्रम्हचर्य, परिग्रह, अस्तेय का भी महत्व बताया। बड़ा उपाश्रय ट्रस्ट के अध्यक्ष विमल पगारिया एवं सचिव राजेश पटनी ने बताया कि प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.30 बजे से आगम पर प्रवचन हो रहे हैं। समाजजन अलग-अलग आगम शास्त्र घर ले जाकर भक्ति कर दूसरे दिन बैंडबाजे से लेकर उपाश्रय आ रहे हैं। आगामी 25 जुलाई से नौ दिवसीय नवकार महामंत्र के एकासने की आराधना शुरू होगी। फिलहाल 45 दिवसीय श्री सिध्दितप आराधना चल रही है इसमें 50 आराधक शामिल हैं।