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कथा के तीसरे दिन भगवान महाकाल से विश्राम पाने की युक्ति सीखाई


उज्जैन @ पूज्य दीदी माॅ मंदाकिनी रामकिंकर जी की कथा के तीसरे दिन दीदी माॅ ने कहा कि, भगवान श्री महाकाल से जीवन जीने की कला भी सीखना चाहिए। दुःख और सुख जीवन के दो पक्ष है, जो सबके जीवन में अनिवार्य रूप से आते है। दुःख में हम निराष व विचलित होकर आत्महत्या भी कर लेते है। कर्म व श्रम करना मानव मात्र के लिए अनिवार्य है, और श्रम करता हुआ व्यक्ति श्रमित हो जाता है। उसे विश्राम की आवष्यकता होती है। वह विश्राम संसार के विषयों में खोजता है। जबकि भौतिक विषय स्वयं विषाक्त है। वे सच्चा विश्राम नहीं दे पाते। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भगवान षिव ने विष पीया, उसी प्रकार संसारियों को भी पग-पग पर विष पीना पडता है। भगवान श्री शंकर ने उस विष को दूर करने का सरल उपाय बताया कि, मेरे मुख में राम नाम अनवरत चलता रहता है। उसी मुख में जब मैंने विष डाला तो विष और राम मिलकर विश्राम बन गया। अर्थात राम में उतना सामथ्र्य है कि संसार का भयानक जहर भी पचा सकता है। वही राम नाम षिव को अत्यंत प्रिय है, तथा षिव को प्रसन्न करने का सरल उपाय है राम नाम ही है। पूज्य दीदी माॅ मंदाकिनी की रामकथा 22 जुलाई तक महाकाल प्रवचन हाॅल में प्रतिदिन शाम 6 बजे से होगी।

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