श्रद्धा और विश्वास के साथ गुरू पूर्णिमा मनाई गई
उज्जैन । गुरू पूर्णिमा का यह पर्व आषाढ़ माह के अन्तिम दिन पूर्णिमा को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ धूमधाम से शिक्षा विभाग एवं महर्षि सान्दीपनि स्मृति महोत्सव समिति के संयुक्त तत्वावधान में मंगलनाथ रोड स्थित सान्दीपनि आश्रम में मनाया गया। इस अवसर पर उज्जैन दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के विधायक डॉ.मोहन यादव ने कहा कि गुरू आध्यात्मिक जीवन दर्शन का प्रकाश स्तंभ है। सान्दीपनि आश्रम में विलक्षण बुद्धि वाले कृष्ण-बलराम-सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की और गुरू शिष्य की परम्परा की महत्ता को पूरे संसार में प्रसारित किया। भगवान कृष्ण जितने उच्च कोटि के शिष्य थे, तो उनके गुरू कितने उच्च कोटि के होंगे, यह अंदाजा हम लगा सकते हैं। उन्होंने कहा कि उज्जयिनी महर्षि सांदिपनि की कर्मस्थली व योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण, उनके भ्राता बलराम व सखा सुदामा की विद्यास्थली रही है। भगवान श्री कृष्ण ने 14 विद्या 64 कलाओं की शिक्षा केवल 64 दिनों में प्राप्त की थी। इस कारण उज्जयिनी का महत्व पूरे विश्व में ख्यात है।
पं.आनन्दशंकर व्यास ने इस अवसर पर कहा कि प्रत्येक इंसान को अपने-अपने गुरू को महत्व देना चाहिये। उन्होंने कहा कि महर्षि सान्दीपनि स्मृति महोत्सव समिति द्वारा यह 40वा महोत्सव मनाया जा रहा है। महोत्सव में अनेकों विद्वतजनों ने गुरू शिष्य की परम्परा की महत्ता की जानकारी दी है। विश्व का प्राचीनतम शिक्षा का केन्द्र उज्जयिनी रहा है। यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने शिक्षाकाल में उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने शिक्षा विभाग से आग्रह किया है कि गुरू शिष्य की परम्परा का महत्ता का कार्यक्रम शिक्षण संस्थाओं में अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
मुख्य वक्ता के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य डॉ.शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि ज्ञान देने की परम्परा सनातनकाल से चली आ रही है। ज्ञान का महत्व हमारे जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ज्ञान न होता तो आज हम कहीं और होते। मनुष्य की सभ्यता का विकास हुआ है तो वह ज्ञान से ही हुआ है। उज्जयिनी के महर्षि सान्दीपनि के गुरूकुल की परम्परा को आज भी व्यास परिवार ने जोड़े रखा है। अज्ञानता से अंधकार पनपता है और ज्ञान से प्रकाश फैलता है। गुरू की महिमा अनादिकाल से चली आ रही है। प्रत्येक इंसान के मन में गुरू के प्रति भाव ठीक होना चाहिये। गुरू ऋषियों ने समाज को ज्ञान ही दिया है, न कि प्राकृतिक सम्पदाओं का हरण किया है। गुरू सान्दीपनि के गुरूकुल उज्जैन में भगवान कृष्ण ने शिक्षा ग्रहण कर गीता का उपदेश पूरे संसार को दिया है। उन्होंने कहा कि गुरू अपने शिष्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर ज्ञान की महिमा का गुणगान कर उन्हें ज्ञान दे। गुरू की महिमा अपरम्पार है। गुरू वह है जो शास्त्रों का ज्ञान कराता है। गूगल गुरू नहीं हो सकता। वेदों के ज्ञान को विराट स्वरूप में फैलाने वाला गुरू ही होता है।
महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो.तुलसीदास परोहा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए गुरू एवं शिष्य की परम्परा पर विस्तृत प्रकाश डाला। प्राचीनकाल से ही गुरू को उच्च कोटि का स्थान प्राप्त है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा महर्षि सांदिपनी की प्रतिमा का मंत्रोच्चार के साथ विधिसम्मत गुरूपाद पूजन कर आरती की गई। पश्चात आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया। शा.उत्कृष्ट उ.मा.वि. माधवनगर के छात्र-छात्राओं ने श्री छगनलाल शिवालिया के संगीत निर्देशन में सरस्वती वंदना एवं गुरू वंदना की मधुर प्रस्तुति दी। पश्चात श्री महाकाल वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के बटुकों ने वैदिक मंगलाचरण की प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की रूपरेखा एवं स्वागत उद्बोधन महर्षि सांदीपनि स्मृति महोत्सव समिति, उज्जैन के अध्यक्ष पं. आनन्द शंकर व्यास ने दिया।
कार्यक्रम में अतिथियों के द्वारा सेवानिवृत्त वयोवृद्ध शिक्षक श्री रामगुलाम दुबे व श्रीमती शशिकला रावल का शाल-श्रीफल व पुस्तक भेंट कर सम्मान किया। साथ ही साथ उज्जैन शहर के कक्षा 10 वीं एवं 12 वीं बोर्ड परीक्षा में प्रावीण्य सूची में आए विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री संदीप नाडकर्णी ने किया तथा आभार प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी श्री अभय तोमर ने माना।
इस अवसर पर कार्यक्रम में श्री राजेश गंधरा, पं.कमला शंकर त्रिवेदी, श्रीमती पुष्पा व्यास, श्री विनोद काबरा, प्राचार्य श्री बी.एम.एस. परिहार, श्री मुकेश त्रिवेदी, श्री के.के. पोरवाल, श्री पी.एन महाजन, श्री अनिल जैन, श्री गिरीश तिवारी, श्री विवेक तिवारी, श्री विष्णु दीक्षित, श्री राजेश गंधरा, श्री संजय लालवानी, संजय चैऋषिया, श्री प्रमोद शर्मा एवं श्री महेश गुप्ता आदि उपस्थित थे।