ईश्वर को प्रेम का स्वरूप देना ही सूफी गायन
उज्जैन | मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी संस्कृति विभाग के तत्वावधान में शुक्रवार को कालिदास संस्कृत अकादमी के संकुल सभागार में सुफियाना कव्वाली का आयोजन किया गया। इस दौरान सुफियाना कव्वाली के मुंबई से आए मशहूर फनकार उस्ताद मुनव्वर मासूम तथा जावरा से आए श्री एहमद कबीर, भूरे खाँ कव्वाल एवं दल द्वारा सूफियाना कव्वाली पेश की गई, जिसे सुनकर कलाप्रेमी श्रोतागण झूम उठे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सांसद डॉ. चिन्तामणी मालवीय थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि ईश्वर को प्रेम का स्वरूप देना ही सूफी गायन है। सूफियाना कव्वाली ने ईश्वर की भक्ति को प्रेम का स्वरूप देकर ‘मैं नहीं तू’ की भावना को परिलक्षित किया है। इसमें समर्पण की भावना साफ दिखाई देती है। सांसद ने कहा कि सूफियाना कव्वाली में दिल के अंदर उतरने के तत्व हैं। धर्म और खुदा का जितना सरलीकरण भक्ति के द्वारा सूफी गायन ने किया गया है, उतना किसी ने नहीं किया। सांसद ने अपने उद्बोधन के दौरान रूमी, रहीम, कबीर, मीराबाई और बुल्लेशाह की कुछ भक्ति से सराबोर पंक्तियां सभी के समक्ष सुनाईं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र ने कहा कि कव्वाली में एक बराबरी का रिश्ता सूफी गायन करने वालों व खुदा में साफ दिखाई देता है, जिसकी उदात्ता सिर्फ प्रेम होता है। उज्जैन शुरू से ही एक कलाप्रेमी शहर रहा है। यहां गंगा-जमुनी तहजीब की एक बेहतरीन मिसाल हमेशा से पेश होती आई है। कव्वाली सुनने के लिए जितने लोग मुस्लिम समुदाय से आते हैं, उतने ही हिन्दु समुदाय के लोग ऐसे कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा मजहब और धर्म की दीवार से परे जाकर ऐसे कार्यक्रम समय-समय पर किये जाते रहें हैं। उन्होंने आयोजन के लिए उर्दू अकादमी का आभार व्यक्त किया।
मध्यप्रदेश उर्दू अकदमी की सचिव डॉ. नुसरत मेहंदी ने कहा कि उर्दू अकादमी द्वारा समय-समय पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर किया जा चुका है। ऐसे कार्यक्रमों के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा पुरजोर प्रयास किये गए हैं। उन्होंने अपनी ओर से सभी अतिथियों और कलाप्रेमी श्रोताओं का स्वागत किया।
कार्यक्रम की स्थानीय समन्वयक सुश्री शबनम अली शबनम ने कहा कि उज्जैन शहर में ऐसे आयोजन का काफी समय से कलाप्रेमी दर्शकों को इंतजार था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कव्वालों द्वारा आज यहाँ सूफीयाना कव्वाली प्रस्तुत की जाएगी। सूफीयाना कव्वाली खुदा की इबादत का एक तरीका है, जिससे रूह को सुकून मिलता है।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले अतिथियों द्वारा शॉल और पुष्पमालाओं से तथा स्मृतिचिन्ह भेंट कर कव्वालों का सम्मान किया गया। इसके पश्चात जावरा के कव्वाल श्री एहमद कबीर भूरे खाँ द्वारा खुदा की शान में बेहतरीन कव्वाली ‘एक जर्रे को चमक देकर मुनव्वर कर दे, बाग को दश्त, कांटों को गुल कर दे, उसकी मर्जी में माकूफा जमाने का मिजाज, वो अगर चाहे तो कतरे को समंदर कर दे, ये तेरा करम है ख्वाजा मेरी बात तो बनी है’ तथा मुंबई के कव्वाल उस्ताद मुनव्वर मासूम एवं दल द्वारा ‘वो अजान हो रही चल सर को झूकाते हैं, अल्लाह बख्श देगा चल आंसू बहाते हैं’ की प्रस्तुति दी गई जिसे सुनकर मुख्य अतिथि व सभागृह में मौजूद कलाप्रेमी श्रोता खुशी से झूम उठे।