विकास के मुद्दे पर इंदौर की तरह क्या एकमत नहीं हो सकते उज्जैनवासी ?
संदीप कुलश्रेष्ठ
आज यह उज्जैन की विडंबना है कि जिस प्रकार विकास के मुद्दे पर इंदौर के सभी राजनैतिक दल, जनप्रतिनिधि, समाजसेवी, स्वयंसेवी संगठन ,नागरिक आदि एक होकर सभी राजनैतिक मतभेद भूलकर इंदौर के विकास के लिए एकजुट होकर लड़ते हैं। क्या उसी प्रकार उज्जैनवासी विकास के मुद्दे पर एक नहीं हो सकते ? इस पर सबको गौर करने की जरूरत हैं। किसी भी ज्वलंत समस्या के लिए इंदौर वासियों ने एकजुट होकर संकल्प लिया और उस समस्या का निराकरण भी कर लिया। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हमारे सामने है। आज जरूरत उज्जैनवासियों को यह हैं कि वे भी उज्जैन के विकास के लिए एकजुट होकर लड़े और अपना लक्ष्य प्राप्त करें।
इंदौर के विकास के लिए इंदौरवासियों द्वारा एकजुट होकर जो प्राप्त किया गया हैं , उसकी लंबी फेहरिस्त हैं। हम केवल कुछ ही उदाहरणों पर सरसरी निगाह डालते हैं। सबसे पहल इंदौर के सभी राजनैतिक दल , जनप्रतिनिधि, स्वयंसेवी संगठन , समाजसेवी आदि ने नर्मदा का पानी इंदौर लाने के लिए एकजुट होकर लड़े , और उन्होंने अपनी यह लड़ाई तब तक जारी रखी जब तक नर्मदा का पानी इंदौर की प्यास बुझाने के लिए आ नहीं गया। इसी प्रकार इंदौर की षान राजवाड़ा को बाले बाले बेचने का ष्षडयंत्र सामने आते ही फिर सभी इंदौर वासी एकजुट हो गए। उन्होंने सरकार से लड़ाई लडी और राजबाडा को बिकने से रोक लगाने में सफलता पाई। ष्यही नहीं राज्य सरकार ने उसे अपने अधिपत्य में लेकर इंदौर वासियों को समर्पित कर दिया। इसी प्रकार लालबाग के ऐतिहासिक और पुरातत्व दृष्टिकोण को देखते हुए उसे भी संरक्षण के लिए राज्य सरकार को अपने हाथ में लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। ताजा उदाहरण इंदौर के एक सार्वजनिक तालाब की भूमि पर सरकारी भवन बनाने का हैं। इस पर रोक लगाने के लिए फिर इंदौर वासी एक हुए । इस पर सरकार को झुकना पड़ा। उसे तालाब की भूमि पर सरकारी भवन बनाने का निर्णय वापस लेना पड़ा।
आइये, अब हम उज्जैन की कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं पर नजर डालें। क्या इन पर सभी राजनैतिक दल, जनप्रतिनिधि सामाजिक संगठन , स्वयं सेवी संस्थाएं आदि एक जुट होकर सर्वमान्य निर्णय नही ले सकते । अब हम उज्जैन की प्रमुख समस्याओं को सिलसिलेवार लेते हैं-
मोक्षदायिनी शिप्रा नदी सदा निरा रहें-
देशभर के श्रद्धालु मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में श्रद्धा के साथ डुबकी लगाने के लिए वर्षभर आते रहते हैं। उनकी भावनाओं के ध्यान में रखकर शिप्रा नदी हमेशा स्वच्छ रहे, यह सब चाहते हैं । किंतु यह भी सब जानते हैं कि शिप्रा नदी में उज्ज्ैन के गंदे नाले अनेक जगह मिलकर उसे खुले आम गंदा कर रहे हैं। इसे हमेशा स्वच्छ रखने के लिए सरकारी योजनाए बनती है , किंतु उनका क्या हर्ष होता हैं ,यह भी सब जानते हैं। शिप्रा नदी सदा निरा रहे, इसके लिए उज्जैनवासियों को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए। यहां राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की आवश्यकता हैं। यदि उज्जैनवासी एकजुट होकर ठान लें तो शिप्रा नदी सदा निरा रहेगी। इसके लिए सबकुछ माकुल व्यवस्था भी हो सकती हैं। नागरिकों की इसके लिए समितियां बने जो निरंतर अलग अलग घाटों पर निगरानी करें तथा उसकी रिपोर्ट पर तुरंत कारवाई हो, यह सुनिश्चित व्यवस्था करने की आवश्यकता हैं।
भ्रष्टाचार मुक्त हो सिंहस्थ-
हाल ही में उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन हुआ। तीन हजार पांच सौ रूपये की कुल योजना से अनेक कार्य उज्जैन में हुए। प्रभारी मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह सार्वजनिक स्तर पर सिंहस्थ में पांच हजार करोड़ रूपये खर्च होने की बात करते रहे । एक दल विशेष द्वारा सिंहस्थ के आयोजन में हुए निर्माण कार्य और अन्य व्यवस्था पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाए गए। यह उज्जैन के बाशिंदे अच्छी तरह से जानते हैं कि क्या हो रहा हैं। इसके बावजूद सत्ताधारी राजनैतिक दल मौन रहा। क्या यह नहीं हो सकता कि राजनैतिक मतभेद से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार मुक्त सिंहस्थ का आयोजन हों । इसके लिए सभी को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता हैं। यहां हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सिंहस्थ का आयोजन उज्जैन और राज्य सरकार का गौरव हैं। इसलिए सब एकजुट होकर भ्रष्टाचार मुक्त सिंहस्थ का आयोजन करे, उसके लिए ठोस कार्य करने की जरूरत हैं।
पेयजल का प्रमुख जलस्त्रोत गंभीर डेम -
सन् 1992 में जब गंभीर डेम का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था, तब यह कहा जा रहा था और माना भी जा रहा था कि अब उज्जैन में पेयजल का संकट कभी नहीं होगा। किंतु गंभीर डेम से निरंतर हो रही जल चोरी के कारण सालभर पेयजल प्रदाय गंभीर डेम से नहीं हो पाता हैं। और आखिरी के दो तीन महिने उज्जैनवासियों के लिए बड़े संकटपूर्ण बितते हैं। यह आश्चर्य की बात हैं कि अपनी क्षमता से पूरा भरा गंभीर डेम गर्मी का मौसम आते आते सूख जाता हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। इस पर भी उज्जैन वासियों को एकजुट होकर जल चोरी रोकने के प्रयास करना चाहिए। और उज्जैनवासियों को पूरे वर्ष पेयजल प्राप्त हो इसकी समुचित व्यवस्था करना चाहिए।
नानाखेड़ा बस स्टैंड का पूरा उपयोग हो-
सन् 1992 के सिंहस्थ के समय बने नानाखेडा बस स्टेंड का उपयोग सिर्फ सिंहस्थ के समय ही होता हैं। यह अत्यंत विसंगतिपूर्ण बात हैं। उज्जैनवासियों को एकजुट होकर नानाखेड़ा बस स्टैंड 12 महिने उपयोगी हो, इसके लिए ठोस प्रयास करने की आवश्यकता हैं।
देवासगेट बस स्टैंड का समुचित उपयोग हां-
नानाखेड़ा बस सटैंड की तरह ही त्रासदी देवासगट बस स्टैंड की भी हैं। हर बार सिंहस्थ के समय देवासगेट बस स्टैंड उजड जाता हैं। फिर उसकी सुध कोई नहीं लेता। उज्जैनवासियों को एकजुट होकर उज्जैनवासियों के हित में क्या उपयोग हो इसके लिए समुचित ठोस पहल करने की आवश्यकता है।
अखिल भारतीय स्तर का हो कालिदास समारोह-
एक समय था जब सही मायने में कालिदास समारोह अखिल भारतीय स्तर का हुआ करता था। एक समय था जब इसका शुभारंभ देश के राष्ट्रपति और प्रधानंमंत्री किया करते थे। फिर केंद्र स्तर के मंत्री से होते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री और अब जाकर राज्य के एक मंत्री के द्वारा शुभारंभ हो रहा हैं। पहले समारोह स्थल ठसाठस भरा रहता था। अब गिनती के लोग पहुंचते हैं। कालिदास समारोह को वापस अखिल भारतीय स्तर प्राप्त करने के लिए सबको मिलकर ठोस प्रयास करने की आवश्यकता हैं।
सप्त सागर और अन्य तालाब अतिक्रमण मुक्त हों-
सप्त सागर के बदहाल हालात को कुछ हद तक सुधारने का श्रेय निसंदेह नगर निगम के युवा अध्यक्ष श्री सोनू गेहलोत को दिया जा सकता हैं। इन सप्त सागरों में से कुछ की हालत अब अच्छी हो गई हैं। अब आवश्यकता हैं सब सप्त सागरों के हालत सुधरें और वें अतिक्रमण मुक्त हां। साथ ही शहर के सभी तालाबों को सीमांकन किया जाकर उसे भी अतिक्रमण मुक्त करने की आवश्यकता हैं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो नगर के एतिहासिक तालाब और कुंए बावडी नष्ट हो जाएंगे।
शहर में मवेशी खुले घूमे नहीं-
उज्जैन के किसी भी मोहल्ले में चले जाएं, वहां आवारा मवेशी खुलेआम घूमते हुए पाए जाएंगे । नगर निगम कुछ दिनों के लिए अभियान छेडती हैं। लेकिन कुछ दिनों के बाद वही ढाल के तीन पात । शहर में आवारा मवेशी घूमता नहीं पाया जाए ,इसके लिए सबको एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता हैं।
उज्जैन में दूरदर्शन स्टुडियों हों-
उज्जैन एक एतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक नगरी हैं। वर्षभर यहाँ विभिन्न तीज त्यौहारों पर देश भर के श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करने और मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में डुबकी लगाने आते रहते हैं। उज्जैन के महत्व को देखते हुए यहा दूरदर्शन स्टुडियो होना चाहिए। सबको इसके लिए प्रयास करने की जरूरत भर हैं।
यदि उज्जैनवासी एकजुट हां जाए तो इंदौर की तरह ही उज्जैन का भी विकास होते देर नहीं लगेगी। जरूरत है सबको एकजुट प्रयास करने की । जब इंदौर में यह हो सकता हैं, तो महाकाल की नगरी में भी यह जरूर हो सकता हैं।
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