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अनोखा मंदिर – यहां शिव का जलाभिषेक खुद करती है प्रकृति


सावन का महीना आ गया है और इसी के साथ शिव भक्तो का तांता शिवालयों पर लगने लगा है। हालांकि अपने देश में शायद ही ऐसा कोई स्थान हो जहां शिव मंदिर न हो परन्तु फिर भी विशेष रूप से इस महीने शिवालयों में शिव भक्तों की भीड़ लगी रहती है। शिव मंदिरों की बात करें तो दक्षिण भारत के रामेश्वरम से लेकर उत्तर दिशा के हिमालय में हर साल स्वयं बनने वाले अमरनाथ तक अनेकों इस प्रकार के शिव मंदिर हैं जिनमें आप बहुत सी दैवीय शक्तियों को महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ मंदिर इस प्रकार के भी हैं जिनका संरक्षण प्रकृति स्वयं करती है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी देने जा रहें हैं। इस मंदिर का नाम है टपकेश्वर महादेव, यह मंदिर टौंस नदी के किनारे देहरादून में स्थित है। इस मंदिर की खूबी यह है कि इसको सीधा प्रकृति का संरक्षण मिला हुआ है। जब भी कोई शिव भक्त व्यक्ति किसी भी शिवालय में जाता है तो वह शिवलिंग को स्वयं ही जल चढ़ा कर उसका जलाभिषेक करता है परंतु इस मंदिर में प्रकृति स्वयं ही यहां प्रतिष्ठित शिवलिंग का जलाभिषेक लगातार करती रहती है।
यह मंदिर एक गुफा रूपी स्थान में बना है और इसी गुफा के ऊपर स्थित पत्थर से जल टपक कर शिवलिंग का जलाभिषेक करता रहता है इसी कारण से इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा। पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि द्रोणाचार्य का बच्चा अश्वत्थामा एक समय भूख से बहुत व्याकुल था और द्रोणाचार्य को उसके दूध के लिए कोई गाय नहीं मिल पाई, तब द्रोणाचार्य ने उससे कहा कि गाय तो शिव के पास है, तुम उन्हीं से मांगो और उस समय अश्वत्थामा शिव उपासना करते हुए रोने लगा तब अचानक उसके आंसुओ की कुछ बूंदे शिवलिंग पर गिर गई, जिससे शिव द्रवित हो उठे और उन्होंने अश्वत्थामा के लिए दूध की एक धारा बहाई, यह दूध धारा हर पूर्णिमा को स्वयं ही निकलने लगती थी, पहले यह शिव का दुग्दाभिषेक करती और फिर बाकी दूध अश्वत्थामा को दिया जाता था, इसलिए उस समय इस शिवलिंग को दुग्धेश्वर महादेव कहा जाता था, परन्तु अब यहां दूध की जगह पर जल धारा बहने लगी।

सावन के महीने की अपनी अलग विशेषता होती है और शिव भक्त इस महीने को विशेष मानते हैं। वहीं दूसरी और शैव संप्रदाय वाले लोग इस महीने का विशेष महात्मय बताते हैं आइये आज हम भी आपको इस महीने के विशेष महात्मय के बारे में कुछ जानकारी दे दें।
सावन माह का महात्मय –
सावन महीने को वास्तव में श्रावन महीना कहा जता है, यह महीना हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से सबसे पवित्र महीना माना जाता है, यदि संसारिकता के संदर्भ में सावन के महीने की बात करें तो इसको “प्रेम का महीना” कहा जाता है। असल में इस समय संसार की अधिकतर प्रजातियां प्रजनन करती हैं। सावन के महीने को उत्तर भारत में काफी जोरशोर से मनाया जाता है। इस महीने में लड़कियों को उनके माता-पिता और शादीशुदा महिलाओं को उसके सास-ससुर गहने और उपहार देते हैं। पौराणिक संदर्भ में भी सावन के महीने की खास विशेषता है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने की शुरुआत से भी समुद्र मंथन का कार्य प्रारंभ हुआ था और इस माह में ही शिव ने ही हलाहल विष को पीकर सम्पूर्ण मानवजाति की रक्षा की थी। इस माह में जितने भी सोमवार पड़ते हैं उन सब दिनों में प्रत्येक शिवालय में विशेष पूजा की जाती है। कुंवारी लड़कियां भी इस माह में सोमवार के व्रत रखती हैं। जिससे उनको अच्छा वर प्राप्त होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस माह में जिन लोगों की शादी होती है उन लोगों के बच्चे स्वस्थ और दीर्घायु होते हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो सावन का महीना न सिर्फ संसारिकता के भौतिक लाभों को आपको देता है बल्कि दैवीय लाभ भी इस माह में आपको मिलते हैं।
 

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