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ब्रह्म ज्ञान के भुवन-भास्कर हैं-श्री आशुतोष महाराज जी



श्री आशुतोष महाराज जी ‘अध्यात्म की प्रचण्डक्रांति’ हैं
प्रिय पाठकगणों! यह कहना, अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ‘अध्यात्म की प्रचण्डक्रांति’ हैं। एक ऐसी आँध्ी हैं, जो अध्यात्म की सारी रूढ़िवादी मान्यताओं, परिभाषाओं व अंध्-धरणाओं को जड़ से उखाड़ने को तत्पर है।
    आज समाज के लिए भगवान सिर्पफ कुछेक धर्मिक-स्थलों, धर्मिक-ग्रंथों और पारंपरिक कर्म-काण्ड़ों तक ही सीमित है । लेकिन गुरु महाराजजी ने आध्यात्मिक क्रंाति का बिगुल बजाया । शास्त्रों-ग्रंथों के आधर पर न केवल यह बताया कि ईश्वर को देखा जाता है।भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। बल्कि उसे प्रत्यक्ष प्रकट कर दिखाया।
    एक समय था, जब यह माना जाता था कि सूरज पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर काटता है । लेकिन उस समय एक वैज्ञानिक  हुए -गैलीलियो। उन्होंने एक विरोध्ी स्वर उठाया । समाज को सूर्य केन्द्रित विश्व व्यवस्था दिया। इस वजह से गैलीलियो को कटघरे में खड़ा होना पड़ा । एक दिन जब वे कोर्ट आॅपफ जस्टिस से बाहर निकल रहे थे, तो उन्होंने शोर-शोर से ध्रती पर पैर पटके और चीख-चीख कर कहा- ‘ये लोग समझते क्यों नहीं? ये जो ध्रती है, यह अब भी सूरज के इर्द-गिर्द घूम रही है।सूरज ध्रती के इर्द-गिर्दनहीं!’ गैलीलियो ने एक दूरबीन का भी आविष्कार किया, जिससेउ न्होंने विज्ञान जगत के सामने अंतरिक्ष का नक्शा प्रकट करके रख दिया और प्रयोगात्मक विज्ञान को समाज के सामने रखा।
    इसी तरह गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने प्रयोगात्मक अध्यात्म को समाज के सामने रखा।गैलीलियो ने दूरबीन दी थी।महाराजजी ने दिव्य दृष्टि साध्कों के अंदर प्रकट की। लाखों जिज्ञासुओं को ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन कराया  । उनके अंतजर्गत में दिव्य साक्षात्कार कराया और आज भी करा रहे हैं। उनमें से जो अभ्यासी साध्क हैं, जो ईमानदारी से त्रिकुटि में ध्यान लगाते हैं , वे श्रीमहाराज जी की इस महिमा को जानते हैं ।वे जानते हैं कि अध्यात्म के सबसे उँफचे शिखर पर आसन लगा है-गुरुदेवश्री आशुतोष महाराज जी का !
    पश्चिम के एक लेखक हुए हैं, कैनन डोएल । अपनी एक पुस्तक में वे लिखते हैं- यह एक बहुत बड़ी गलती है कि यदि जो आप सि(ांत रचतेहैं, उसका आपके पास कोई तथ्य नहीं है। परगुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी इससे भी एक कदम आगे की बात करते हैं। महाराज जी कहा करते हैं- ‘यह उससे भी बड़ी गलती है कि यदि जो सि(ांत आप नेर चाहै , आपके पास उसके प्रयोगात्मक तौर पर जीवन में लागु करने का सामथ्र्य नहीं है।’
    गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी में यह सामथ्र्य है । उन्होंने ईश्वर और अध्यात्म की बात की, तो उसे लोगों के जीवन में प्रकट भी कर दिया।ऐसे ‘अध्यात्म के सूर्य’, ‘ब्रह्मज्ञान के भुवन-भास्कर’ है श्री आशुतोष महाराजजी।

 

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