तृतीय श्रेणी कर्मचारी प्रवीण के प्राधिकरण में ही तीन चैंबर, संपदा शाखा, जनसंपर्क और रजिस्ट्री का पॉवर भी उसी के पास
साल 2012, एलपी भार्गवनगर योजना में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे में मृत व्यक्ति को जीवित बताकर मकान नंबर 64 का आवंटन करा लिया था। गड़बड़ी पकड़ में आई तो जांच बैठी और दोषी तृतीय श्रेणी कर्मचारी प्रवीण गेहलोत का निलंबित किया गया। प्रवीण ढाई साल निलंबित रहा लेकिन इसके बाद जब प्राधिकरण में वापसी हुई तो हमेशा प्रािधकरण के सीईओ का खास बना रहा। खास से मतलब, ऐसे ओहदे से हैं, जिनकी उसे पात्रता ही नहीं, उन महत्वपूर्ण पदों पर जमा रहा।
इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि 2012 में जिस योजना में यह गड़बड़ी हुई थी। उसमें एक नहीं, दो मकान 64 के साथ ही 620 में भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे में आवंटन किया गया। दूसरे मकान का आवंटन किसी अन्य व्यक्ति को हो गया। लेकिन यहां भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुदामाप्रसाद अग्रवाल के फर्जी दस्तावेज लगाए गए थे। इसकी जांच पर विभाग ने ही ध्यान नहीं दिया। वहीं 64 के मकान के मामले में कार्यपालन यंत्री केसी पाटीदार ने दोषमुक्त करार दिया। 12 साल बाद पुलिस द्वारा गंभीर धाराओं में प्रकरण दर्ज करने से उस समय की जांच और उस समय के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्धता की श्रेणी में आती है, जिनके रहते हुए षडयंत्र रचा गया और जांच में कोई और न फंसे, तात्कालीन रूप से गेहलोत को निलंबित किया और फिर उस जांच में भी कार्यपालन यंत्री पाटीदार ने गेहलोत को दोषमुक्त कर दिया।