कौन सा ये शहर बोलो कौन सा ये गांव है। एक टुकड़ा धूप ये एक टुकड़ा छांव है।
कौन सा ये शहर बोलो कौन सा ये गांव है। एक टुकड़ा धूप ये एक टुकड़ा छांव है। यह पंक्तियां संस्था सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी में डॉ. मोहन बैरागी ने सुनाई। संस्था के राजेंद्र देवधरे दर्पण ने बताया कि क्लब फनकार, राजस्व कॉलोनी में आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रामचंद्र धर्मदासानी ने की। अतिथि कवि अशोक भाटी, व्यंग्यकार शशांक दुबे थे। इस अवसर पर वरिष्ठ सदस्य डॉ. प्रभाकर शर्मा का स्वागत किया गया।
डॉ. रफीक नागोरी ने उम्र जब ढलान पे पहुंची, शायरी आसमान पे पहुंची..., डॉ. नेत्रा रावणकर ने सुबह उठकर मां आंगन बुहारती है... रचना सुनाई। डॉ. वंदना गुप्ता ने पुनर्जीवन (कविता), डॉ. पुष्पा चौरसिया ने आंख रही ना कभी सरोवर फिर झील सी भर जाती है, सुनाई। आशीष श्रीवास्तव अश्क ने दर्पण बदले महज नजर में, शाम वहां है रोज सहर में... और संतोष सुपेकर ने लेखकीय धैर्य पर आधारित तब देखना... कविता सुनाकर दाद बटोरी। शशांक दुबे ने किसी सेलिब्रिटी के कार्यक्रम में आने पर व्यंग्य प्रस्तुत किया। कवि अशोक भाटी ने मिठास ढूंढते आज राम, फिर शबरी के बेर में... सुनाकर खूब दाद बटोरी। मानसिंह शरद ने हास्य छंद के साथ कविता भी सुनाई।
माया बधेका, वर्षा गर्ग, वीएस गहलोत साकित उज्जैनी, विजय गोपी, सुगनचंद्र जैन, प्यारेलाल आवारा, प्रियम जैन , हरदीप दायले और डॉ. प्रभाकर शर्मा ने अपनी प्रभावी प्रतिनिधि रचनाएं प्रस्तुत कीं। काव्य गोष्ठी के अंत में हाल ही में दिवंगत हुए उज्जैन के साहित्यकारत्रय अशोक वक्त, डॉ.धनंजय वर्मा और गड़बड़ नागर अभिमन्यु त्रिवेदी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया। अतिथि स्वागत प्रदीप सरल, रवि शुक्ला, डॉ. अंजना शुक्ला, हरिशंकर शर्मा ने किया। सरस्वती वंदना महेशचंद्र सोनी ने प्रस्तुत की। श्रद्धेय श्रीकृष्ण सरल की कविता का वाचन नितिन पोल ने किया। आभार संस्था अध्यक्ष डॉ. संजय नागर ने माना। सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी में रचनाकारों ने सहभाागिता की।