महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के संस्कृत शिक्षण-प्रशिक्षण एवं ज्ञान-विज्ञान संवर्धन केंद्र
महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के संस्कृत शिक्षण-प्रशिक्षण एवं ज्ञान-विज्ञान संवर्धन केंद्र और केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय की स्वतंत्र संस्था भारतीय भाषा समिति के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय भारतीय भाषा अनुवाद कार्यशाला की सोमवार से शुरुआत हुई।
विश्वविद्यालय के योगेश्वर श्रीकृष्ण भवन में सोमवार सुबह कार्यशाला का शुभारंभ सरस्वती पूजन, दीप प्रज्वलन और वैदिक मंगलाचरण के साथ हुआ। इसके बाद विश्वविद्यालय का कुलगान प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर परिसर के शिक्षा शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. वायएस रमेश ने कहा एक भाषा से अन्य भाषाओं में अनुवाद की प्रक्रिया में भावानुवाद और शब्दानुवाद पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, तभी अनुवाद की सार्थकता सिद्ध होती है, अन्यथा अनुवाद अपने मूल अर्थ को नष्ट कर देता है।
विशिष्ट अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नईदिल्ली के डॉ. पवन व्यास ने कहा संस्कृत भाषा दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक है। संस्कृत में निहित ज्ञान-विज्ञान का अनुवाद के माध्यम से प्रस्तुतीकरण आवश्यक है। इसमें भारतीय भाषा समिति युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है। संचालन डॉ. दिनेश चौबे ने किया। आभार कुलसचिव डॉ. दिलीप सोनी ने माना। कल्याण मंत्र के साथ उद्घाटन सत्र का विराम हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. विजय कुमार सीजी ने कहा भारत में विभिन्न प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं। इसलिए भारत भाषा समृद्ध राष्ट्र है।
संस्कृत सभी की जननी और भाषाओं की मुकुट है। पूरे विश्व की भाषाएं संस्कृत से प्राय: प्रभावित अथवा उद्भूत है। अनुवाद की सरल विधि छात्र-छात्राओं और शोधार्थियों को बताना चाहिए, तभी अनुवाद करने की प्रक्रिया को बल मिलेगा। कार्यशाला की प्रस्तावना एवं अतिथियों का वाचिक स्वागत संगोष्ठी संयोजक डॉ. अखिलेशकुमार द्विवेदी ने किया। कार्यशाला में संस्कृत से अन्य भाषाओं में अनुवाद की प्रक्रिया को सरलतापूर्वक बताया जाएगा। कार्यशाला में देश के कई विद्वान और शताधिक अध्येता उपस्थित हुए।