परंपरा वाले स्थान पर डंडा रोपिणी पूर्णिमा के बाद मांगलिक कार्य नही करते
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर 24 फरवरी शनिवार का दिन होने से तथा इस दिन मघा नक्षत्र की उपस्थिति में पूर्णिमा अनुकूल और शुभ मानी जा रही है। इस बार दाण्डा रोपिणी पूणिज़्मा पर शनि पूर्णिमा का योग बनने से यह विशेष रूप से बलशाली और महत्वपूर्ण है। परंपरा वाले स्थान पर डंडा रोपिणी पूर्णिमा के बाद मांगलिक कार्य नही करते। निमाड़ की ओर यह परंपरा आज भी मान्य है, कुछ समाज इस बात को आज भी महत्व देते है। हालांकि पंचांग की गणना के अनुसार मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि कार्यों के लिए दाण्डा रोपीणी पूर्णिमा से कोई विशेष दोष नही लगता है।
पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार जब तक सूर्य की मीन संक्रांति नही हो जाती, तब तक मांगलिक कार्य में कोई दोष नही है। मीन की संक्रांति के पहले तक यदि कोई मुहूर्त निकालता है तो उस मुहूर्त में विवाह आदि कार्य किये जा सकते है। यदि गृह आरंभ के लिए नींव का खोदना या भूमि का पूजन का कोई मुहूर्त निकलता है तो वह भी किया जा सकता है। परंपरा वाला विषय आपसी विचारधारा का हो सकता है। दाण्डा रोपिणी पूर्णिमा पर पर मुहूर्त का अनुक्रम कम हो जाता है। वहीं श्रेष्ठ और शुद्ध लग्न कम ही होते है। कुछ स्थानों पर रेखा के दोष और उत्तर दक्षिण भारत में संक्रांति के दोष देखे जाते है। अलग-अलग परिपाटी के अनुसार विवाह, गृह प्रवेश, गृह आरम्भ के मुहूर्त होते है। मूल रूप से पंचांग की गणना का आधार देखें तो सूर्य की मीन संक्रांति मलमास की श्रेणी में आती है तो वह कालखंड त्यागने योग्य बताया गया है। 15 अप्रैल से सूर्य की मेष संक्रांति के बाद मांगलिक कार्य की शुरुआत हो जाती है। कुछ स्थानों पर चैत्र माह में विवाह व मांगलिक कार्य को भी त्यागने की बात कही गई है। मीन संक्रांति का कालखंड मलमास की श्रेणी में आता है। इस दृष्टि से 15 दिन पहले से ही लोग मांगलिक कार्य का चिंतन करना बंद कर देते है।