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यूडीए को पांच करोड़ का नुकसान तीन साल बाद भी कार्रवाई नहीं


उज्जैन विकास प्राधिकरण की आवासीय योजना शिप्रा विहार में ऑक्शन की बजाए कलेक्टर गाइड लाइन से लॉटरी पद्धति से प्लॉट आवंटन किए जाने से यूडीए को करीब साढ़े चार से साढ़े पांच करोड़ का आर्थिक नुकसान होने के बावजूद तीन साल बाद भी कार्रवाई नहीं की गई है।

मामला शिप्रा विहार के ई व डी सेक्टर के करीब 23 प्लॉट का है, जिन्हें वर्ष 2020 में टेंडर की बजाए लॉटरी से बेच दिया गया, वह भी सीमित समय में यानी आवेदन जमा करने की अवधि केवल सात दिन ही निर्धारित की गई थी। ऑक्शन में प्लॉट व मकान बेचकर मुनाफा कमाने वाले यूडीए ने इस बार ही क्यों लॉटरी पद्धति से प्लॉट को बेचे, जिसे लेकर सवाल खड़े हो चुके हैं लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं की गई है।

आम लोग व जरूरतमंद शुरू से ही लॉटरी पद्धति के पक्ष में रहे हैं और उन्होंने टेंडर पद्धति का विरोध किया है लेकिन आम लोगों की बात को महत्व नहीं देते हुए यूडीए ने अधिकांश योजनाओं में टेंडर से ही प्लॉट बेचकर मुनाफा कमाया है। केवल शिप्रा विहार के प्लॉट के मामले में ही लॉटरी पद्धति को क्यों अपनाया गया। ऑक्शन में प्लॉट बेचे जाते तो प्राधिकरण को आय होती। लॉटरी पद्धति से 23 प्लॉट का आवंटन कलेक्टर गाइड लाइन से किए जाने से यूडीए को करीब 4.50 से 5.50 करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ है।

शिप्रा विहार के 23 प्लॉट को लेकर यह हुई गड़बड़ी शिप्रा विहार के 23 प्लॉट की कीमत 5 करोड़ 98 लाख 2 हजार 66 रुपए रखी गई थी। इसमें तत्कालीन गाइड लाइन अनुसार 11200 रुपए प्रति वर्ग मीटर के मान से कीमत निर्धारित की गई थी। 216 फीट के प्लॉट की कीमत केवल 24.19 लाख तो 360 वर्ग फीट की कीमत 40.32 लाख रुपए ही आई। बाजार मूल्य 18 हजार से 22 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर थी।

ऐसे बदलते गया सिस्टम
1. पहले आओ पहले पाओ की पद्धति को अपनाया गया।
2. लॉटरी पद्धति को अपनाया जाकर पंजीयन कंफर्म किए।
3. अब टेंडर पद्धति को अपनाया जाकर मुनाफा कमाया जा रहा।

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