डॉ.मोहन यादव ने कहा कि आध्यात्मिकता की यात्रा ही भारत की विकास यात्रा है।
डॉ.मोहन यादव ने कहा कि आध्यात्मिकता की यात्रा ही भारत की विकास यात्रा है। हमारे इतिहास में हमारा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान समाहित है। कुंभ का मेला नक्षत्र के अनुसार होता है। प्रत्येक बारह वर्ष में उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन किया जाता है। बाकी जगह आयोजित होने वाले मेले को कुंभ कहा जाता है, लेकिन उज्जैन में आयोजित होने वाले कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है। सिंहस्थ में विवेकानन्द एवं रामकृष्ण मिशन के मानने वाले भी आते है। परमेश्वर पूरी सृष्टि में विद्यमान है। उज्जैन में स्थित डोंगला में स्टेण्डर्ड टाईम की गणना होती है।
मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव रविवार को माधव सेवा न्यास में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी मध्य प्रान्त के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने एकनाथ रनाडे के विचारों पर विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के विद्यार्थियों द्वारा लिखित पुस्तक ध्येयनिष्ठ जीवन का विमोचन किया। इस अवसर पर स्मिता दीदी ने तीन ओंकार प्रार्थना की प्रस्तुति दी। नन्दन जोशी ने अतिथियों का परिचय दिया। मानस भट्टाचार्य ने एकल गीत का गायन किया। कार्यक्रम में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी मध्य प्रान्त के संचालक मनोहर देव सहित केंद्र से जुड़े अधिकारी बड़ी संख्या में मौजूद थे।
महाकाल लोक के बाद उज्जैन की आर्थिक प्रगति तेजी से हुई-
प्रबंध निदेशक इंजीनियरिंग प्रा.लि. के प्रतीक पटेल ने कहा कि उज्जैन में जब से महाकाल लोक बना है, तब से उज्जैन का आर्थिक विकास उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है। आर्थिक विकास तेज गति से हो रहा है। आज इन्दौर से ज्यादा होटल उज्जैन में है। उज्जैन वासियों ने इन्वेस्ट किया तो उनके मन्दिर भी सम्पन्न हुए। पहले मुझे लोग कहते थे कि मन्दिरों पर इन्वेस्ट करने से कोई लाभ नहीं, लेकिन आज चारों और सम्पन्नता आई है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि जो व्यक्ति सफल हो रहा है तो उसे प्रोत्साहित करें। किसी भी व्यक्ति को क्रिटिसाइज न करें अपितु अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा पर भरोसा रखें। आज हमें अपनी संस्कृति, इतिहास एवं सभ्यता पर गर्व होता है।
आध्यात्मिकता केवल उपासना तंत्र नहीं
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष पद्मश्री डॉ.निवेदिता भिंड ने कहा कि आध्यात्मिकता केवल एक उपासना तंत्र नही है अपितु आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि स्वभाव ही आध्यात्मिकता है। अपनेपन के दायरे में जो आता है, वह आध्यात्मिकता है। जो व्यक्ति परिवार, समाज और देश के बारे में सोचता है, वह आध्यात्मिकता ही है। व्यक्ति का विस्तृत स्वरूप परिवार है। परिवार का विस्तृत स्वरूप समाज है। समाज का विस्तृत स्वरूप राष्ट्र है और राष्ट्र का विस्तृत स्वरूप ही सम्पूर्ण विश्व है। व्यक्ति अपना स्वाभाविक जीवन जीते हुए नि:स्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करता है, वह सब आध्यात्मिकता ही है।