आतंक, असहिष्णुता और हिंसा के खिलाफ लड़े बुल्ले शाह
उज्जैन बुल्ले शाह, पंजाब की माटी की सौंधी गंध में गूंजता एक ऐसा नाम है, जो धरती से उठकर आकाश में छा गया। वे भारतीय सूफी संत परंपरा के महान कवि थे, जो पंजाब की माटी में जन्मे, पले और उनकी ख्याति पूरे देश में फैली। सच्चे सूफी संत बुल्ले शाह के जीवन पर आधारित नाटक बुल्ला की प्रस्तुति कालिदास अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में शाम 7 बजे से अभिनव रंगमंडल की अगुवाई में निर्देशन पर केंद्रित तीन दिवसीय नाट्य समारोह की दूसरी संध्या शुक्रवार को दी गई। शरद शर्मा ने बताया कि पंजाब के महत्वपूर्ण रंग हस्ताक्षर, संगीत नाटक अकादमी पंजाब के अध्यक्ष केवल धालीवाल पर केंद्रित एवं मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग की सहभागिता में आयोजित नाटक बुल्ला का शुभारंभ उज्जैन जिला एवं सत्र न्यायालय में न्यायाधीश जसबीर कौर, सुधा शर्मा, नसीम भटनागर, सुमन गर्ग, ममता रानी शर्मा ने दीप प्रज्वलन कर किया। शाहिद नदीम द्वारा रचित नाटक बुल्ला उनकी कविताओं और उनके जीवन के विषय में उपलब्ध लोकप्रिय मिथकों और ऐतिहासिक अभिलेखों पर आधारित रहा। बुल्ले शाह के जीवन में नाटकीय प्रसंगों की कोई कमी नहीं है। उनकी सत्य की खोज, अपने गुरु शाह इनायत के प्रति उनकी भक्ति, असहिष्णु पादरी और भ्रष्ट लोगों के साथ उनका संघर्ष, नवाब और युद्धों के प्रति उनका विरोध और धर्म के नाम पर बहाया गया खून सबकुछ इस नाटक में सशक्त दृश्यों के रूप में शामिल किया गया। आतंक और असहिष्णुता, हिंसा और नफरत के खिलाफ बुल्ले शाह का विरोध आज भी कम से कम दक्षिण एशिया के लिए प्रासंगिक है। नाटक का मंचन करते हुए कलाकार। नाटक में मंच पर गुरतेज मान, डॉली सङ्घल, साजन कोहिनूर, विष्णु शर्मा, सजन कोहिरनूर, गुरदित पाल सिंह, हरप्रीत सिंह, परमिंदर सिंह, जॉनपाल सहोटा, केवल धालीवाल ने अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा। मंच परे गायक कुशाग्र कालिया, हर्षिता, लेखक शाहिद नदीम, मंच प्रबंधक साजन कोहिनूर, प्रस्तुति नियंत्रक गुरतेज मान, आैर विष्णु शर्मा कला निर्देशन केवल धालीवाल रहे। समारोह के अंतिम दिवस शनिवार को बर्टोल्ट ब्रेख्त द्वारा रचित नाटक का अनुवाद मिट्टी ना होवे मतरेई मंच रंगमंच अमृतसर की ओर से प्रस्तुत किया जाएगा। इसी शाम को केवल धालीवाल को राष्ट्रीय अभिनव सम्मान प्रदान किया जाएगा।