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आरिफ के चुनावी राजनीतिक जीवन का अंत, बेटा आतिफ करेगा आलोक से मुकाबला


दिनेश निगम 'त्यागी',वरिष्ठ पत्रकार
                   राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट में मुकाबला आमतौर पर हर बार कांटे का होता रहा है। एक चुनाव को अपवाद के तौर पर छोड़ दें तो जीत वरिष्ठ नेेता आरिफ अकील की ही होती रही है। 2003 का चुनाव ऐसा था जब कांग्रेस से बागी होकर आरिफ मसूद ने सपा के टिकट पर भोपाल उत्तर से चुनाव लड़ा था। वे लगभग 11 हजार वोट ले जाने में सफल रहे थे, फिर भी आरिफ अकील साढ़े 7 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत गए थे। स्वास्थ्य कारणों से आरिफ अकील 1990 के बाद पहली बार मैदान में नहीं होंगे। कांग्रेस ने उनके बेटे आतिफ अकील को पार्टी का टिकट दिया है। आतिफ के सामने होंगे भाजपा प्रत्याशी पूर्व महापौर आलोक शर्मा। 2008 के चुनाव में भी आलोक भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें आरिफ अकील ने 4 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया था। 
कांग्रेस की बगावत का होगा असर
                  आरिफ के मैदान में न होने के कारण संभवत: इस बार पार्टी में बगावत हो गई। कांग्रेस के एक अन्य मजबूत दावेदार नासिर इस्लाम ने परिवारवाद का आरोप लगाकर  कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने ऐलान किया है कि वे चुनाव जरूर लड़ेंगे। किसी तीसरे दल से लड़ेंगे या निर्दलीय, अभी तय नहीं है लेकिन लड़ेंगे जरूर। आरिफ अकील के अस्वस्थ होने के बाद नासिर ने क्षेत्र में काफी मेहनत की थी। इसलिए उनकी बगावत कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है। नासिर को कांग्रेस ने एक बार 2008 में भोपाल मध्य सीट से टिकट दिया था। यह चुनाव वे लगभग 2 हजार वोटों के अंतर से हारे थे लेकिन 2013 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट कर आरिफ मसूद को देिया। मसूद 7 हजार से ज्यादा वोटों से हारे लेकिन उन्हें 2018 में फिर मौका मिला और वे जीत गए। नासिर का कहना है कि उनके साथ पहले भोपाल मध्य में अन्याय हुआ और अब जब उनकी तैयारी भोपाल से थी तो पार्टी ने फिर उन्हें मौका नहीं दिया।
सहानुभूति के भरोसे आतिफ
                   भोपाल उत्तर क्षेत्र में लगभग हर किसी को मालूम है कि आरिफ अकील बीमार हैं। बीच में उन्हें एयरलिफ्ट कर दिल्ली भी इलाज के लिए ले जाया गया था। वे चलने-फिरने में असमर्थ हैं लेकिन बेटे के लिए अपनी तरफ से वोट जरूर मांगेंगे। आतिफ को उम्मीद है कि उन्हें पिता आरिफ की बीमारी के कारण पैदा सहानुभूति का लाभ जरूर मिलेगा। अपने पिता के सपंर्कों पर भी उन्हें भरोसा है। आरिफ की जगह उनके साथ उनके चाचा भी कांग्रेस का टिकट मांग रहे थे लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिला। इस कारण परिवार में भी अंतर्कलह के हालात हैं। फिर भी आतिफ को शालीन और व्यवहार कुशल माना जाता है। इसका लाभ उन्हें मिल सकता है।
भाजपा के आलाेक की घर-घर पैठ
                 भाजपा प्रत्याशी पूर्व महापौर आलोक शर्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजदीक हैं। आलोक को महापौर बनाने के लिए शिवराज ने कड़ी मेहनत की थी और इस चुनाव में भी मुख्यमंत्री ने भोपाल में चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत आलोक के ही क्षेत्र से की। उन्होंने भरोसा दिलाया कि आलोक किसी को निराश नहीं करेगा। आलोक खुद महौपार और भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे हैं। वे चौक में रहते हैं और क्षेत्र के घर-घर में उनकी पैठ है। पार्टी कार्यकर्ताओं से भी उनके आत्मिक संबंध हैं। आलोक का टिकट पहले हो गया था। इसलिए वे क्षेत्र का बड़ा हिस्सा पहले ही कवर कर चुके हैं।
सबसे ज्यादा मुस्लिम उत्तर में ही
                 राजधानी में वैसे तो लगभग हर सीट में मुस्लिम मतदाता हैं लेकिन भोपाल उत्तर विधानसभा सीट में उनकी तादाद सबसे ज्यादा लगभग 55 हजार है। इसके मुकाबले हिंदू मतदाताओं की संख्या लगभग 44 हजार बताई जाती है। यही वजह रही कि 1993 को छोड़कर भाजपा यहां कभी नहीं जीती। बताते हैं कि अयोध्या आंदाेलन के कारण इस चुनाव में कांग्रेस का हिंदू वोट भी भाजपा के पाले में चला गया था। भाजपा से जीतने वाले रमेश शर्मा गुट्टू भैया का संपर्क भी अच्छा था। यह चुनाव इसलिए रोचक होगा क्योंकि बागी के तौर पर नासिर इस्लाम भी मैदान में होंगे। यदि वे 10 हजार तक वोट ले जाने में सफल रहे तो हिंदू-मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से भी मुकाबला बराबरी का हो जाएगा।
आरिफ थे मुस्लिमों के एकछत्र नेता
                आरिफ अकील इस सीट में मुस्लिम और कांग्रेस मतदाताओं की दम पर जीतते रहे हैं। वे ही मुस्लिम समाज के एकछत्र नेता हैं, इसका अंदाजा तीन चुनावों को देख कर लग जाता है। पहली बार 1990 में वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे। तब कांग्रेस से दिग्गज नेता हसनात सिद्दीकी मैदान में थे लेकिन आरिफ अकील निर्दलीय चुनाव जीत गए। हसनात को मात्र लगभग 8 हजार वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। अगले 1993 के चुनाव में कांग्रेस ने दूसरे दिग्गज रसूल अहमद सिद्दीकी को टिकट दिया। आरिफ अकील यह चुनाव जनता दल के टिकट पर लड़े। इस चुनाव मेें भी आरिफ अकील को 61 हजार से ज्यादा जबकि रसूल अहमद को लगभग 7 हजार वोट ही मिले। इस बार रसूल अहमद की जमानत जब्त हो गई। हालांकि यह चुनाव भाजपा ने जीता था। तीसरा चुनाव 2003 का था जब आरिफ मसूद कांग्रेस से बगावत कर सपा के टिकट पर चुनाव लड़ गए लेकिन उन्हें 11 हजार वोट ही मिले और आरिफ अकील 71 हजार से ज्यादा वोट लेकर जीतने में सफल रहे। इस चुनाव से आरिफ अकील की चुनावी राजनीति या कहें राजनीतिक जीवन का अंत हो गया लेकिन वे हमेशा भोपाल में मुस्लिमों के सबसे बड़े नेता रहे।
गौर से दोस्ती, चप्पल-कुर्ता रहे पहचान
               आरिफ अकील की कुछ मामलों में खास पहचान थी। जैसे उनकी स्व बाबूलाल गौर के साथ दोस्ती चर्चित थी। दोनों लगभग हर सप्ताह सहभोज में शामिल होते थे। उनकी दोस्ती के खूब किस्से हैं। कहा यहां तक जाता है कि गौर साहब उत्तर भोपाल में आरिफ की मदद करते थे और आरिफ गोविंदपुरा में गौर साहब की। विधानसभा के अंदर भी कई बार उनके बीच का दोस्ताना वार्तालाप चर्चा में रहता था। आरिफ की दूसरी पहचान थी उनके पैर की चप्पल। वे हमेशा दो लड़ वाली हवाई चप्पल पहनते थे। उनका कुर्ता-पैजामा भी हमेशा एक जैसा होता था। इतना ही नहीं, उनके पास एक पुरानी टाटा सूमो गाड़ी थी, वे उसमें ही चलना ज्यादा पंसद करते थे। खास बात यह भी थी की आरिफ अकील के चुनाव में चौक के हिंदू और व्यापारी भी वोट देते थे। इसलिए बगावत के कारण मुस्लिम वोट कटते तो इसकी भरपाई हिंदू मतदाताओं से  हो जाती थी और वे ही चुनाव जीतते थे।

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