मिल रहा जवाब, ‘बड़ी देर कर दी जनाब आते आते’....
राज- काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
चुनावी बेला में ‘आया राम, गया राम’ माहौल के बीच भाजपा-कांग्रेस में भगदड़ के हालात तो हैं लेकिन असंतुष्टों, बागियों को अलग स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल भाजपा की तुलना में कांग्रेस ज्यादा सुरक्षित है। टिकट न मिल पाने से ये नाराज नेता दूसरे दल के दरवाजे पर जाकर दस्तक देते हैं तो जवाब मिल रहा है कि ‘बड़ी देर कर दी जनाब आते आते।’ उनसे कहा जा रहा है कि आ जाइए स्वागत है लेकिन टिकट की गारंटी नहीं। उन्हें बताया जाता है कि आपने संपर्क करने में विलंब कर दिया क्योंकि संबंधित सीट पर प्रत्याशी लगभग तय हो गया है। ऐसे में ये बागी अपना सा मुंह लेकर लौट आते हैं या बसपा-सपा जैसे दलों की ओर रुख करते हैं। यदि ज्यादा आहत हैं तो टिकट न मिलने की शर्त पर भी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। कांग्रेस अपेक्षाकृत सुरक्षित है क्योंकि उसने प्रत्याशियों की घोषणा में विलंब किया। भाजपा ने प्रत्याशी जल्दी घोषित किए तो भगदड़ भी वहां ही ज्यादा दिख रही है। भगदड़ के मामले में भले कांग्रेस खुद को सुरक्षित मान रही है लेकिन प्रत्याशियों की घोषणा में विलंब के कारण वह प्रचार अभियान में भाजपा से पिछड़ गई है। भाजपा के घोषित प्रत्याशी भगवान की शरण में जाने के बाद प्रचार अभियान में जुट चुके हैं जबकि कांग्रेस मैदान से नदारद है।
लक्ष्मी पुत्र सुधीर बिगाड़ेंगे कई सीटों के समीकरण....
भाजपा ने पहले सूची जारी की तो बगावत भी उसके यहां ही ज्यादा दिखाई पड़ी। सागर के पूर्व सांसद लक्ष्मी नारायण यादव के बेटे सुधीर यादव ने भी भाजपा छोड़ दी। वे किसी अन्य दल से चुनाव लड़कर भले न जीतें, लेकिन कई सीटों पर भाजपा का गणित बिगाड़ सकते हैं। सागर जिले की ही 5 विधानसभा सीटों में यादव समाज के मतदाता निर्णायक है। ये हैं सुरखी, बंडा, नरयावली, खुरई और सागर। छतरपुर जिले की मलेहरा सीट पर भी यादव मतदाताओं की तादाद अच्छी है। यह सीट बंडा से सटी है। लक्ष्मीनारायण यादव सागर से सांसद रहे हैं और सुरखी विधानसभा सीट से विधायक और सरकार में मंत्री। सुधीर खुद सुरखी और बंडा से चुनाव लड़ चुके हैं। सुधीर ने 2018 का चुनाव सुरखी से भाजपा की टिकट पर लड़ा था और उप चुनाव में गोविंद राजपूत को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उम्मीद थी की पार्टी इस बार उन्हें बंडा सीट से टिकट देगी। पिछले 1 साल से वे यहां सक्रिय हैं। उमा भारती की भाजश के टिकट पर वे बंडा से एक चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें 22 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। आश्वासन के बाद भी जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। उनका चुनाव लड़ना लगभग तय है। किस पार्टी और किस क्षेत्र से लड़ेंगे, जल्दी पता चलेगा।
‘साफ्ट से हार्ड हिंदुत्व’ की ओर बढ़ती कांग्रेस....!
कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ‘साफ्ट से हार्ड हिंदुत्व’ की ओर बढ़ती दिख रही है। कब कोई काम शुभ है और कब अशुभ, इसकी चिंता करती भाजपा नजर आती थी, कांग्रेस नहीं। अब उल्टा हो रहा है। पितृ पक्ष में जब हिंदू धर्म में लोग कोई भी अच्छा और शुभ काम करने से परहेज करते हैं, तब भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, 24 मंत्रियों सहित कुल 57 मौजूदा विधायकों की सूची जारी कर दी। सभी को विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी बना दिया गया। दूसरी तरफ जो कांग्रेस शुभ-अशुभ की परवाह नहीं करती थी, उसने घोषणा कर दी कि वह पितृपक्ष निकलने के बाद नवरात्रि में अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करेगी। कांग्रेस खुद को भाजपा से भी बड़ा सनातनी साबित करने की भी कोशिश कर रही है। इसलिए कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस वह सब कर रही है जो कभी भाजपा और उसकी मातृ संस्था आरएसएस करते थे। अब कांग्रेस कार्यालयों में गणेश भगवान और देवी मां की मूर्तियां रखी जा रही हैं। कांग्रेस कार्यालयों में हनुमान चालीसा और सुंदरकांड के पाठ होने लगे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं के विरोध के बावजूद कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और कुबरेश्वर धाम के पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा करवा दी। है न गजब और अजीब बात।
चंबल-ग्वालियर में यह भाजपा के लिए होगा बड़ा झटका....!
खबर चौंकाने वाली और जल्दी भरोसा न करने वाली है। यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भान्जे और दिग्गज नेता अनूप मिश्रा भाजपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं। चंबल-ग्वालियर अंचल में कभी उनकी तूती बोलती थी। अनूप भी भाजपा का एक चेहरा थे और प्रदेश की भाजपा सरकार में ताकतवर मंत्री। वे लंबे समय से पार्टी में किनारे हैं। अटकलें हैं कि उपेक्षा से दुखी होकर ऐन चुनाव के वक्त उन्होंने भाजपा छोड़ने का मन बना लिया है। एक दो दिन के अंदर वे कोई धमाका कर सकते हैं। हालांकि उनसे संपर्क नहीं हुआ, इसलिए इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है। एक और पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह का भी भाजपा से मोहभंग होने की खबर है। वे भी पार्टी छोड़ कांग्रेस के दरवाजे में दिख सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने और केंद्र में मंत्री बनने के बावजूद चंबल-ग्वालियर अंचल में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं बताई जाती। लगभग हर सर्वे यहां भाजपा की तुलना में कांग्रेस को काफी आगे दिखा रहा है। ऐसे में इन पूर्व मंत्रियों का पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा। पहले भी सिंधिया के खास कई नेता उनका और भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इससे भी भाजपा का माहौल खराब हुआ है।
आदिवासी, महिलाओं के लिए भाजपा-कांग्रेस में भिड़ंत....
इस बार विधानसभा चुनाव में आदिवासी और महिला वर्ग को लेकर भाजपा-कांग्रेस में भिड़ंत के हालात हैं। इन वर्गों के मतदाताओं को अपने पाले में रखने के लिए भाजपा-कांग्रेस के बीच छीना-झपटी का खेल चल रहा है। भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा भले घोषित नहीं किया लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हैं। दोनों के बीच वार- पलटवार हो रहा है। मुख्यमंत्री चौहान की लाड़ली बहना योजना के कारण महिला वर्ग चुनाव के केंद्र में आया, जवाब में कमलनाथ नारी सम्मान योजना की गारंटी लेकर आए। अब शिवराज कह रहे हैं कि कांग्रेस ने लाड़ली बहना योजना को बंद कराने की तैयारी कर ली है लेकिन मैं चुपके से पैसा डालूंगा। कमलनाथ ने उन्हें अपने ढंग से जवाब दिया। प्रियंका गांधी मंडला आदिवासियों के बीच आईं और नई पढ़ो और पढ़ाओ योजना की घोषणा कर डाली। इससे तिलमिलाई भाजपा ने कहा कि कमलनाथ पहले राहुल गांधी से झूठ बुलवाते थे, अब प्रियंका गांधी से बोलवा रहे हैं। उन्होंने गांधी परिवार पर भी टिप्पणी कर दी। जवाब में कमलनाथ ने गांधी परिवार की शहादत याद दिला दी। आदिवासी वर्ग को रिझाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे हो चुके हैं तो राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने भी इनके बीच पहुंच कांग्रेस के लिए माहौल बनाया है।
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