क्या राधे-राधे बाबा, मनीष महाराज महामंडलेश्वर की श्रेणी में आते हैं? - महाकाल सेना ने महाकाल गर्भगृह में दर्शन सुविधा देने पर उठाए सवाल
उज्जैन- महाकाल मंदिर में प्रबंध समिति द्वारा श्रावण मास में गर्भगृह में आम प्रवेश बंद रखने का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। गर्भगृह में अभी वीआईपी, नेता, दानदाता आदि किसी के भी जाने पर प्रतिबंध है जिससे आम भक्तों में खुशी है।लेकिन कुछ लोग संत चोले की आड़ में अब भी रोजाना गर्भगृह में जाकर दर्शन-पूजन कर जल आदि चढ़ा रहे हैं। इसे लेकर महाकाल सेना ने आपत्ति लेते हुए महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति को पत्र लिखकर कहा है कि प्रतिबंध के बावजूद अति विशिष्ट साधु-संत व महामंडलेश्वर को गर्भगृह में जाने की अनुमति आखिर कैसे दी जा रही है। इस पर पुनर्विचार हो क्योंकि भविष्य में अन्य साधु-संत भी अपने को महामंडलेश्वर बताकर गर्भगृह में जाएंगे। वर्तमान में चिंतामन मार्ग निवासी राधे-राधे बाबा एवं उजड़खेड़ा निवासी मनीष महाराज जो कि ना तो महामंडलेश्वर है और ना ही अति विशिष्ट फिर भी दोनों प्रातः 7 बजे की आरती में गर्भगृह में प्रवेश कर जल चढ़ा रहे हैं यह अनुचित होकर समिति द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन भी है। महाकाल सेना राष्ट्रीय धर्म प्रकोष्ठ के प्रमुख महेंद्र सिंह बैंस ने पत्र के माध्यम से समिति से यह भी कहा है कि जो संत अंदर जा रहे हैं क्या वे अति विशिष्ट संत या महामंडलेश्वर की श्रेणी में आते हैं?, क्या इनके द्वारा अति विशिष्ट संत या महामंडलेश्वर होने का कोई प्रमाण समिति को दिया है? और यदि कोई संत स्वयं को महामंडलेश्वर बताते हैं तो उनका आधार कार्ड का आईडी प्रूफ चेक किया जाता है या नहीं? मंदिर प्रबंध समिति के लिए इन सारे विषयों की जांच जरूरी है। समिति को यह भी पता करना चाहिए कि देश में कितने महामंडलेश्वर हैं, महामंडलेश्वर बनाने के नियम क्या है, क्या धार्मिक संस्थाओं को इसका अधिकार हैं ? जिससे प्रबंध समिति को दर्शन सुविधा तय करने में सुविधा हो। पत्र में यह भी लिखा है कि जब संतों को निशुल्क गर्भगृह दर्शन की अनुमति है तो समिति देश के प्रमुख मंदिरों के पुजारियों को दर्शन सुविधा दें। क्योंकि देश में संत और पुजारी दो अलग धाराएं हैं। पुजारी वंशानुगत रूप से सनातन धर्म को मानने वाले समग्र हिंदू समाज का नेतृत्व और मार्गदर्शन करते हैं जबकि संत केवल अपनी धार्मिक संस्था से संबंधित होते हैं उन्हें संबंधित धार्मिक संस्था द्वारा विभिन्न उपाधियां दी जाती हैं ना कि सनातन धर्म को मानने वाले समग्र हिंदू समाज के द्वारा। अतः मंदिर समिति को अपने निर्णयों में देश के प्रमुख पुजारियों की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए।