काशी विश्वनाथ परिसर का कायाकल्प : मोदीजी , नदियों की भी लें अब सुध !
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के कायाकल्प का लोकार्पण किया । कुल 339 करोड़ रु की लागत के इस भव्य काम को केवल 32 महीने में ही पूर्ण करने के इस ऐतिहासिक कार्य ने देश भर के श्रद्धालुओं का मन जीत लिया । यह परिसर पहले केवल 3 हजार वर्ग फीट क्षेत्र तक सीमित था । अब 5 लाख वर्ग फीट के भव्य आकर में सबका मन मोह रहा है । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को इसके लिए तहेदिल से बधाई । अब प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि वे देश भर की आस्था और विश्वास की प्रतीक नदियों की भी सुध लें ! और जैसा पुनीत कार्य काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के भव्य निर्माण कार्य का किया है , वैसा ही गंदगी और प्रदूषण से रोज मर रही हमारे देश की नदियों को भी नया जीवन दें !
यह सबको पता है कि देश भर में चार पुण्य स्थानों पर कुम्भ का पावन पर्व मनाया जाता है । देव और दानवों में अमृत पान की लालच में झूमा झपटी हुई थी । उसमें अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार में गंगा नदी , इलाहबाद में गंगा नदी और नासिक में गोदावरी नदी में गिरी और उन सभी स्थानों पर कुम्भ महापर्व का आयोजन होता है । और इसी प्रकार उज्जैन की शिप्रा नदी में भी अमृत की बूंदें गिरने से यहाँ विशिष्ट कारणों से कुम्भ की बजाय सिहस्थ महापर्व का आयोजन किया जाता है । लाखों श्रद्धालु आस्था और विश्वास से इन नदियों में स्नान कर और डुबकी लगाकर पुण्य कमाते हैं । किन्तु इन तीनों नदियों के वर्तमान में हाल बेहाल है ! ये सिसक - सिसक कर मर रही है ! इन नदियों का जल आचमन और स्नान के योग्य भी नहीं है ! दिल्ली और आगरा में यमुना नदी अपनी हालात पर रो रही है ! मथुरा और वृन्दावन में धर्मशाला से यमुना नदी में स्नान और डुबकी लगाने की भावना से निकलने वालों को पंडित यह कह कर रोक देते हैं कि यहीं से नहा कर चलें यमुना नदी का पानी स्नान के योग्य नहीं है ! यहाँ हम अपवाद स्वरूप कुछ घाटों की बात नहीं कर रहे हैं , बल्कि इन सभी नदियों के उद्गम स्थल से उनके अन्य नदियों में या समुद्र में मिलने तक की यात्रा के संदर्भों में बात कर रहे हैं !
देश की पुण्य सलिला नदियों की यह दयनीय हालत आज कल में नहीं हुई है । अनेक दशकों से इन नदियों की अनदेखी , कल कारखानों से निरंतर निकल कर बेखोफ नदियों में मिल रहे दूषित पानी और नदियों के किनारों पर बसे कस्बों और शहरों के गंदे नालों का गंदा पानी हम इन्हीं नदियों में ही तो मिला रहे हैं ! और मिलते हुए चुपचाप देख भी रहे हैं ! इसके लिए देश की सभी केंद्र सरकारें , राज्य सरकारें , प्रशासन और हम सब आम जन दोषी हैं ! किसी एक को ही दोष देना सही नहीं है ! इन नदियों को साफ और स्वच्छ करने के लिए पहले भी और आज भी करोड़ों रु की योजनाएँ बनाई जाती है और वह सब भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाती है ! और नदियाँ वर्षों से वैसी ही गंदी और प्रदूषित बनी रह जाने के लिए अभिशप्त हैं !
देशभर की इन प्रसिद्ध नदियों की वर्तमान हालातों को हम उदाहरणस्वरूप मध्यप्रदेश की उज्जैन की शिप्रा नदी की हालत से अच्छी तरह समझ सकते हैं । यहाँ हर बारह साल में एक बार सिहस्थ महापर्व का आयोजन होता है । हम बात कर रहे हैं 2016 में हुए सिहस्थ पर्व के बारे में । राज्य सरकार का कर्तव्य बनता है कि एक माह के पर्व के दौरान आने वाले लाखों लोगों को साफ पानी में स्नान करने की सुविधा मुहैया की जा सके । शिप्रा नदी के जल को इंदौर से आने वाली खान नदी का अत्यंत प्रदूषित पानी त्रिवेणी संगम पर प्रदूषित कर देता है । इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए 2016 के सिहस्थ के पहले 90 करोड़ रु की लागत से खान नदी डायवर्सन योजना जल संसाधन विभाग ने बनाई । इसमें राघौ पिपलिया से केडी पैलेस तक 19 किलोमीटर लंबी भूमिगत पाइप लाइन डाली गई । त्रिवेणी पर मिट्टी का कच्चा बांध बना दिया गया ताकि खान नदी का दूषित पानी शिप्रा नदी में मिल नहीं सके । और खान नदी का गंदा और दूषित पानी जैसा था , वैसे ही बिना साफ किये राघौ पिपलिया से सीधे वापस केडी पैलेस पर वापस शिप्रा नदी में ही मिला देते हैं । खैर उस समय गर्मी का समय था इसलिए जैसे - तैसे सिहस्थ पर्व मन गया । किन्तु अगले ही साल बारिश के मौसम में खान नदी का पानी जब कच्चे बांध से ओवरफ्लो होकर शिप्रा नदी में मिकर उसे गंदा करने लगा तो शिकायत होने पर निर्माण एजेंसी जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने साफ कह दिया कि यह योजना तो बारिश के लिए थी ही नहीं ! और गर्मी में तो वैसे ही खान नदी लगभग सूख ही जाती है ! तो यह 90 करोड़ रु की योजना केवल साल में केवल 3 - 4 माह के लिए ही बनाई गई थी ।कितना बड़ा मजाक !
और फिर 2019 में शनिश्चरी अमावस्या का पर्व आया । और हजारों श्रद्धालु शिप्रा नदी में डुबकी लगाने पहुँचे तो त्रिवेणी संगम पर पानी नहीं बल्कि कीचड़ था ! ताबड़तोड़ तरीके से प्रशासन ने पाइप लाइन से पानी लाकर फव्वारों से जैसे - तैसे लोगों को स्नान की सुविधा दी ! यह हालत देख हजारों श्रद्धालु निराश लौटे ! उस समय श्री कमलनाथ प्रदेश में मुख्यमंत्री बने ही बने थे । उन्होंने तुरंत कलेक्टर और संभाग आयुक्त को हटा दिया ! मुख्य सचिव को जांच के लिए भेजा । उन्होंने कच्चे बांध की जगह पक्का बान्ध बनाने के निर्देश दिए । वे निर्देश आज भी नस्ती में बंधे हैं ! फिर हाल ही में फिर शनिश्चरी अमावस्या आई । वैसे ही जैसे हर साल आती है । हमेशा की तरह करीब 10 लाख रु की लागत से फिर कच्चा बांध बनाया गया ! अधिकारियों के दुर्भाग्य से मावठा गिर गया ! ठीक पर्व के ही दिन प्रातः काल कच्चा बांध बह गया ! खान नदी का गंदा , बदबूदार और दूषित पानी सबके सामने शिप्रा नदी में मिल रहा था । फिर ताबड़तोड़ पाइप लाइन से पानी लाकर श्रद्धालुओं को फव्वारा स्नान करवाया गया ! और हाँ , 90 करोड़ रुपये की लागत की डायवर्सन पाइप लाइन कुछ नहीं कर पाई ! हमेशा की तरह ! यानी निर्माण वर्ष 2016 से अभी तक हर बार हर साल वह असफल सिद्ध हो रही है ! यानी 90 करोड़ गए पानी में !
लगभग यही हाल गंगा नदी हो या यमुना या हो वह नर्मदा नदी ! देश की करीब - करीब सभी नदियों में कल कारखानों और शहरों का गंदा और दूषित पानी ऐसे ही इन सभी धार्मिक नदियों को हर साल दर साल प्रदूषित करते ही जा रहे हैं ! और करोड़ों रुपए की कागत से नदियों को साफ करने की योजनाएँ बन भी रही है और उनका हाल वैसे ही हो रहा है , जैसे उज्जैन की शिप्रा नदी का हो रहा है ! सब केवल देखने के लिए अभिशप्त हैं ! इसलिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से अनुरोध है कि जैसे योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का कायाकल्प किया है , वैसे ही देश की सभी नदियों के भी जीर्णोंद्धार के लिए ठोस पहल करेंगे तो यह देशभर के श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं बल्कि सभी आम जन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थायी सौगात सिद्ध होगी ! और हाँ , योजनाएँ बनवाऐं तो किसी बड़े इंजीनियरों से नहीं , बल्कि देश भर में जल पुरुष के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके श्री राजेन्द्र सिंह जैसे योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही योजना बनवावें जो देश भर में सौ से ज्यादा नदियों को प्रदूषण से मुक्त कर उन्हें पुनर्जीवन दे चुके हैं !
-----------०००--------