तीर्थ नगरी हरिद्वार में इन दिनों कुंभ मेले को आयोजन की तैयारी जोरों पर है
हरिद्वार। तीर्थ नगरी हरिद्वार में इन दिनों कुंभ मेले को आयोजन की तैयारी जोरों पर है और कोरोना महामारी के बीच कुंभ मेले के आयोजन हो रहा है और इसमें लाखों श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है। कुंभ मेले के इतिहास को लेकर दुनियाभर में अभी तक कई शोध भी हो चुके हैं लेकिन अभी तक कोई यह पता नहीं लगा पाया है कि आखिर कुंभ मेले की शुरुआत कैसे और कब से हुई थी। वैसे इतिहासकारों का भी मानना है कि कुंभ मेले का आयोजन हजारों सालों से हो रहा है। इस बारे में कई पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। आइए जानते हैं कुंभ मेले के बारे में क्या कहते हैं पौराणिक ग्रंथ -
स्कंद पुराण में जिक्र है कि देवासुर संग्राम में मरे हुए असुरों को जब उनके गुरु शुक्राचार्य ने अपन संजीवनी विद्या से फिर जीवित कर दिया था तो इंद्र देवता को चिंता होने लगी थी। तब इंद्र देवता ने ब्रह्माजी की सलाह पर समुद्र मंथन किया था और समुद्र मंथन के दौरान जब 13 रत्न निकलने के बाद 14वां रत्न अमृत कलश निकला तो भगवान धन्वंतरी के हाथों गुरु बृहस्पति लेकर भागे। इस दौरान असुरों ने उनका पीछा किया। इस संघर्ष के दौरान चार स्थानों पर अमृत बूंदें गिरी थी और उन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
गौरतलब है कि सनातन धर्म में उल्लेखित सभी पुराणों की रचना अलग-अलग काल में हुई है। कुंभ मेले को लेकर जिस घटना का जिक्र स्कंद पुराण में किया गया है, उसी घटना का उल्लेख पद्म पुराण में भी किया गया है। लेकिन दोनों में फर्क बस इतना है कि स्कंद पुराण में बताया गया है कि भगवान धन्वंतरी के हाथों से बृहस्पति अमृत कलश लेकर भागे थे, जबकि पद्म पुराण में बताया गया है कि बृहस्पति के इशारा करने पर इंद्र देवता के पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर भागे थे। इसके बाद ही असुरों ने उनका पीछा किया और युद्ध शुरू हुआ था, जो करीब 12 वर्ष तक चला था। यही कारण है कि कुंभ मेला भी 12 वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता है।