अस्पताल में 18 बच्चों की मौत के मामले में CMHO और सिविल सर्जन को हटाया
शहडोल। शहडोल जिला अस्पताल में एक सप्ताह में 18 बच्चों की मौत के मामले में मंगलवार को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सीएमएचओ और सिविल सर्जन को हटा दिया है। प्रदेश शासन के स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुलाम चौधरी ने पहले तो डॉक्टरों को क्लीन चिट दे दी लेकिन समीक्षा बैठक के बाद उन्होंने सीएमएचओ डॉ राजेश पांडेय और सीएस डॉ व्हीएस वारिया को हटाने के निर्देश दे दिए। इस बारे में पुष्टि करते हुए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग के सचिव को उन्होंने इसके लिए निर्देश दे दिया है। अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि सागर से किसी डॉक्टर को सीएमएचओ बनाकर भेजा जा रहा है। सीएस के लिए कई स्थानीय डॉक्टरों के नाम पर चर्चा होती रही।
बैठक के बाद बदली स्थिति: समीक्षा बैठक से पहले पत्रकारों से बात करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बच्चों की मौत दुर्भाग्यपूण है लेकिन जिला अस्पताल के अमले ने उपचार में कोई कमी नहीं रहने दी थी। बच्चों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है और उनकी मौत के लिए मुख्य वजह यह है कि उन्हें अस्पताल लाने में अभिभावकों ने देरी कर दी थी। पत्रकारों से बात करने के बाद स्वास्थ्य मंत्री समीक्षा बैठक में चले गए और इसी दौरान ज्ञापन सौंपने पहुंचे कांग्रेस के नेताओं से भी उन्होंने मुलाकत की और ज्ञापन लिया।
भोपाल में हुई बात के बाद गिरी गाज : बैठक के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने भोपाल में शहडोल के घटनाक्रम को लेकर किसी से चर्चा की और इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के सचिव को सीएमएचओ और सीएस को हटाने के आदेश दिए। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि शहडोल की स्थिति के बारे में स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री से चर्चा करने के बाद यह निर्णय लिया है। शहडोल में बैठक के बाद स्वास्थ्य मंत्री अनूपपुर रवाना हो गए और वहां से लौटने के बाद वे उमरिया चले गए।
बुढ़ार में हुई फिर एक मासूम की मौत: मंगलवार को जब शहडोल में स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी जिला अस्पताल का निरीक्षण कर रहे थे और पत्रकारों से बात करने के बाद समीक्षा बैठक कर रहे थे। इसी दौरान बुढ़ार में एक चार महीने के मासूम की मौत हो गई। बताया गया है कि अमलाई निवासी अजय का चार महीने का बेटा बीमार हो गया। वह उसे बुढ़ार अस्पताल लेकर पहुंचा तो डॉक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद परिजन मासूम के शव को लेकर वापस चले गए। हालांकि बाद में इस घटना को लेकर यह चर्चा भी सामने आई कि अस्पताल में पहुंचने के बाद मासूम के नाम की पर्ची भी नहीं बनाई गई थी। जबकि डॉक्टरों का कहना है कि मामला सीरियस था इसलिए पहले बच्चे को देखना जरूरी था। देखने के बाद जब पाया कि बच्चे की मौत हो चुकी है तो फिर पर्ची बनाने का सवाल ही शेष नहीं रह गया था।
बच्चों की मौत को छिपाया गया: जिला अस्पताल में बच्चों की मौतों के मामले में आंकड़ा भी अब विवादित हो गया है। सोमवार को जारी सरकारी विज्ञप्ति में मासूमों की मौत का आंकड़ा 18 बताया गया है जबकि डॉ राजेश पांडेय का कहना है कि लोग अपने-अपने तरीके से आंकड़े निकाल रहे हैं। शहडोल से रेफर कुछ बच्चों की जबलपुर में भी मौत हुई है।