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देवउठनी एकादशी: चार माह बाद निद्रा से उठेंगे श्री हरि


 जिस शुभ कार्य के लिए लोग इंतजार कर रहे थे वह समय आ गया। आषाढ़ शुक्ल की एकादशी से भगवान विष्णु चिर निद्रा में चले जाते हैं और फिर चार महीनों तक वो विश्राम करते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं, यही कारण है कि चार महीनों तक भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन चार महीनों के विश्राम के बाद नारायण जागते हैं और ये दिन होता है देवउठनी एकादशी का।

- कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी देवउठनी एकादशी कहलाती है। क्योंकि इस दिन देव गहरी निद्रा से सोकर उठते हैं और इसी के साथ शुरु हो जाते हैं शादी-विवाह जैसे मंगल कार्य।

- जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे बताते हैं कि हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की बहुत ही मान्यता है जो इस बार 25 नवंबर को है। इस दिन से विवाह संबंधी सभी मंगल कार्यों की शुरुआत होती है।

- देवउठनी एकादशी के अगले ही दिन द्वादशी को तुलसी व भगवान शालिग्राम का विवाह भी कराया जाता है। इस विवाह के बाद ही हिंदू धर्म को मानने वाले विवाह संबंधी शुभ कार्य कर सकते हैं।

भगवान विष्णु ही शालिग्राम रूप में होते है और तुलसी व भगवान नारायण का विवाह कराया जाता है।

यह है कथा-
इसके पीछे भी एक कथा वर्णित है जिसके मुताबिक शंखचूड़ नाम के एक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी। कहते हैं उसके सतीत्व को भंग किए बिना शंखचूड़ को हराना नामुमकिन था। इसीलिए श्री हरि ने अपना रूप बदला और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया जिसके बाद ही शिव ने शंखचूड़ का वध किया। तब वृंदा ने श्री हरि को शिला रूप में परिवर्तित हो जाने का श्राप दिया और इसीलिए नारायण तब से शिला रूप में भी रहते हैं और उन्हें ही शालिग्राम कहा जाता है। वहीं वृंदा ने अगले जन्म में तुलसी के रूप में जन्म लिया तो श्री हरि ने उन्हें आशीर्वाद दिया बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा सम्पूर्ण नहीं होगी।

कार्तिक में होती है शालिग्राम की पूजा-
कार्तिक के पूरे महीने में शालिग्राम की पूजा का काफी महत्व होता है। लेकिन शालिग्राम है क्या ये भी जान लें। शालिग्राम एक गोल काले रंग का पत्थर है जो नेपाल के गण्डकी नदी की तलहटी में पाया जाता है। इस पत्थर में एक छेद होता है और पत्थर के भीतर खुद ही शंख, चक्र, गदा या पद्म अंकित होते हैं।

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