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मैं तो ललित कुमार को फरिश्ता ही मानता हूं...


श्री राजेश बादल जी ललित कुमार जी के बारे अपने जीवन का एक छोटा सा वाकिया बयां करते हुए कहते हैं कि ज़िंदगी में कभी कभी किसी मोड़ पर ऐसे लोग भी मिल जाते हैं ,जिनको आप कभी नहीं भूलते । उस दिन इंदौर प्रेसक्लब के राजेंद्र माथुर ऑडिटोरियम में ललित कुमार से ऐसी ही एक मुलाक़ात हुई । आप भी शायद सिर्फ़ इस नाम से कुछ याद न करें ,लेकिन जब आप उनके कारनामें सुनेंगे तो वे हरदम याद रहेंगे । 
आम तौर पर इंदौर आने का कोई अवसर नहीं छोड़ता । यह शहर मेरी धड़कनों में है । जब कौटिल्य अकादमी की ओर से आलोक वाजपेई ने मुझे न्यौता दिया तो न करने का प्रश्न ही नहीं था । एक कारण तो मैंने बता दिया । दूसरा कारण ख़ुद आलोक थे, जिनके काम से मैं करीब तीन दशक से परिचित हूं । जब उन्होंने मुझे ललित कुमार के कार्यक्रम के लिए कहा तो ज़ाहिर है मेरा पहला सवाल यही था कि भई ! मैं उन्हें नहीं जानता । तुम बुला रहे हो तो कोई रचनात्मक प्रयोजन ही होगा । इस तरह मैं, जाने माने कवि और चिंतक, मेरे वरिष्ठ मित्र राजेश जोशी और समालोचक, विचारक राम प्रकाश त्रिपाठी जी इंदौर जा पहुंचे ।
               अब ललित कुमार जी के बारे में । वे मेहरौली में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में । बचपन में ही कुदरत ने कहर बरसाया और पोलियो के हमले में वे उमर भर के लिए पैरों से एक तरह से वंचित हो गए । बैसाखियों के सहारे ज़िंदगी कटने लगी । दूर एक सार्वजनिक वाचनालय में पढ़ने का चस्का लगा । रोज नियम से घंटों वहां जाते और पढ़ते । जितनी भी पुस्तकें थीं ,सब चाट लीं । नगर निगम के स्कूलों में पढ़ते हुए बायोलॉजी में स्नातकोत्तर किया । जिजीविषा ऐसी कि यूनाइटेड नेशन्स में जा पहुंचे । कई बरस वहां इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के एक्सपर्ट के तौर पर अपनी सेवाएं दीं । चौदह साल पहले बायो इन फॉर्मेटिक्स की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड चले गए । वहां प्रवीण्य सूची में आए और स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की । इसके बाद यूरोपीय यूनियन के लिए काम शुरू किया । हालांकि वे इंटरनेट और कंप्यूटर के ज्ञाता हैं मगर दिल धड़कता था हिंदुस्तान के गांवों में और अपनी बोलियों में । बचपन में पढ़े कवि और लेखक याद आते थे ,जिन्हें आज की पीढ़ी जानती तक नहीं । यह हालत ललित जी को कचोटती थी । उन्होंने जुलाई 2006 में याने चौदह साल पूर्व इंटरनेट पर कविता कोश शुरू किया । आज यह विश्व का सबसे बड़ा ऑन लाइन काव्य संग्रह है । इसमें हिंदी और भारतीय भाषाओं की रचनाएं आप निशुल्क पढ़ सकते हैं । इसमें अब तक एक लाख अड़तीस हज़ार पन्ने स्थान पा चुके हैं। इसके बाद उन्होंने गद्य कोश प्रारंभ किया । इसमें लेखकों, उपन्यास कारों और कहानी कारों की रचनाएं शामिल हैं । ललित का सफ़र यहीं नहीं रुक जाता । विकलांगों की सामाजिक स्थितियों और उनकी वेदना में पूरी सोसायटी को साझीदार बनाने के लिए उन्होंने दो साल पहले ललित दशमलव नाम से एक यू ट्यूब चैनल शुरू किया । अब तक इसके एक लाख सब्सक्राइबर बन चुके हैं । देश दुनिया के विकलांगों का यह चहेता चैनल बन गया है भारत सरकार ने ललित को वर्ष 2018 के राष्ट्रीय पुरस्कार (रोल मॉडल, दिव्यांग सशक्तिकरण) से सम्मानित किया है। ललित ने अपनी ज़िंदगी के बारे  में एक किताब लिखी है  - विटामिन ज़िंदगी । यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हो रही है। 
                   ललित कुमार का अपना ब्लॉग है जिस पर वे कम्प्यूटर तकनीक से जुड़े आलेख लिखते हैं। वेबसाइट पर हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के लिए कई सॉफ़्टवेयर भी विकसित किए हैं। इनमें हिन्दी-रोमन व अन्य भाषाओं में लिप्यांतरण, बेसिक हिन्दी प्रूफ़-रीडिंग औज़ार व अन्य कई उपयोगी सॉफ़्टवेयर शामिल हैं। ब्रेल में अनुवाद के लिए भी इसमें सुविधा है। तो यह विवरण है ललित कुमार का । हमारी ओर से एक शाबाशी भरा सलाम तो उनके लिए बनता है । 
                      इन्हीं ललित जी पर केन्द्रित इंदौर में चार दिनों तक चलने वाला ललित प्रसंग आयोजित किया गया । सूत्रधार आलोक ही थे । कार्यक्रमों की इस श्रृंखला में एक सत्र हमारा भी था । राजेश जोशी जी और त्रिपाठी जी ने अपनी बात रखी । जोशी जी ने इस कविता कोश में शामिल अपनी एक कविता भी सुनाई । यहां आप उसकी रिकार्डिंग सुन सकते हैं । मैंने भी अपनी बात रखी । मेरा कहना था कि ललित हमारे लिए एक नायक से कम नहीं हैं । वे अगर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दरम्यान लिखी गई कविताओं को इसमें शामिल करें तो यह नई नस्ल के बड़े काम की होंगी । मेरे पास ऐसी सैकड़ों रचनाएं हैं और मैंने उन्हें उपलब्ध कराने का वादा किया ।

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