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कामकाजी महिलाओं को सरकार से मिली बड़ी राहत, मातृत्‍व अवकाश की अवधि बढ़ी



कामकाजी महिलाओं के लिए अच्‍छी खबर है। मातृत्व अवकाश को लेकर सरकार ने अहम निर्णय लिया है। इन महिलाओं को मिलने वाले मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ा दी गई है। अभी तक यह अवकाश 12 सप्‍ताह था, जिसे बढ़ाकर 26 सप्‍ताह कर दिया गया है। यानी अभी तक यह 84 दिनों का था, जो अब बढ़ाकर 182 दिनों का कर दिया गया है। यह अवधि आधे साल यानी 6 महीने की अवधि से भी अधिक है। श्रम मंत्री संतोष गंगवार Santosh Gangwar ने Tweet करके इसकी जानकारी दी है। उन्‍होंने इस सूचना के साथ ही अन्‍य जानकारियां भी दी हैं। यह भी बताया गया है कि इस अवधि के दौरान महिला कर्मचारी के वेतन में उनके संस्‍थान कोई कटौती नहीं कर सकेंगे और उन्‍हें पूरा वेतन दिया जाएगा।

उत्‍तर प्रदेश में संविदा शिक्षिकाओं को मिल चुकी है पात्रता
उत्‍तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों व उच्च प्राथमिक स्कूलों में कार्यरत महिला शिक्षामित्रों, महिला अनुदेशकों के साथ-साथ कस्तूरबा गांधी विद्यालय में कार्यरत संविदा शिक्षिकाओं को छह महीने के मातृत्व अवकाश की पात्रता तीन महीने पहले ही मिल चुकी थी। अभी तक इस सुविधा के अभाव में इन्‍हें परेशानी का सामना करना पड़ता था। अब शिशु के जन्म के बाद देखभाल के लिए छह महीने का मानदेय सहित उन्‍हें अवकाश भी दिया जाएगा।

एक साल पहले हाईकोर्ट ने कही थी यही बात

महिला कर्मचारियों के मातृत्व अवकाश को लेकर गत वर्ष अप्रैल में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यही बात कही थी। कोर्ट ने कहा था कि स्थायी,अस्थायी, तदर्थ या संविदा पर नियुक्त सभी महिला कर्मचारियों को 180 दिन का मातृत्व अवकाश लेने का कानूनी अधिकार प्राप्त है। यह आदेश जस्टिस प्रकाश पाडिया ने पूर्व माध्यमिक विद्यालय गवाली बिजनौर में कार्यरत अनुदेशक अंशू रानी की याचिका को मंजूर करते हुए दिया था।

कोर्ट ने आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता को छह महीने की मातृत्व छुट्टी दी जाए। बीएसए ने पिटीशनर के लिए केवल 90 दिनों का अवकाश मंजूर किया था।

730 दिन के अवकाश का अधिकार
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा था कि सरकारी स्थायी महिला कर्मचारी को 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की देखभाल करने के लिए 730 दिन के अवकाश पाने का भी पूरा अधिकार है।

भारतीय संविधान का दिया था हवाला
कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान सभी को समान अधिकार देता है और जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेद करने पर रोक लगाता है। केंद्र सरकार ने कानून बनाया है ऐसे में सरकार अपनी मनमानी नहीं कर सकती।

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