इन हस्तियों को मिला पद्मश्री सम्मान
विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 21 लोगों को साल 2020 के पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की गई है। पद्मश्री पाने वालों में जगदीश लाल आहूजा, मोहम्मद शरीफ, तुलसी गौड़ा और मुन्ना मास्टर शामिल है। पेशावर पाकिस्तान में जन्मे जगदीश लाल आहूजा को PGIMER में गरीब मरीज और उनके परिजनों को मुफ्त खाना और कपड़े और कंबल के साथ आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाते हैं। 1980 में उन्होंने इस काम की शुरुआत की थी और 15 सालों से रोजाना 2000 लोगों की सेवा करते हैं।
मोहम्मद शरीफ अभी तक फैजाबाद और उसके आसपास 25000 से ज्यादा अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। पेशे से साईकल मैकेनिक मोहम्मद शरीफ अंतिम संस्कार में धर्म को लेकर कोई भेदभाव नहीं करते हैं। जावेद अहमद टाक समाज सुधारक हैं और दिव्यांग बच्चों के लिए काम करते हैं। अनंतनाग और पुलवामा के आसपास के 40 से ज्यादा गांव के दिव्यांग बच्चों के लिए वह मुफ्त शिक्षा और दूसरी सहायता देते हैं। 1997 में आतंकी हमले के दौरान वह घायल हो गए और अब व्हील चेयर की सहायता से चलते हैं।
तुलसी गावड़ा को इनसाक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट कहा जाता है। उन्होंने कही पर भी सामान्य शिक्षा नही ली है, इसके बावजूद उनको जंगल में पेड़-पौधों की प्रजातियों के बारे में काफी जानकारी है। गरीब परिवार से संबंध रखने के बावजूद प्रकृति के संरक्षण को लेकर वो काफी सजग है और अभी तक लाखों पौधों को पेड़ बना चुकी है। जंगल के प्रति उनकी जागरुकता और उनके योगदान को देखते हुए वन विभाग ने उनको नौकरी दी है।
भोपाल गैस पीड़ितों की आवाज बनने वाले अब्दुल जब्बार को मरणोपरांत पदमश्री से नवाजा गया है। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के वे संयोजक थे और गैसकांड में अपने पतियों को गंवा चुकी करीब 3500 विधवाओं को उन्होंने व्यावसायिक ट्रेनिंग दी थी।
सत्यनारायण मुंदयार पिछले चार दशकों से अरुणाचल प्रदेश के सूदूर इलाकों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। केरल में जन्म हुआ, अरुणाचल प्रदेश में काम कर रहे हैं। अभी तक 13 बंबूसा लाइब्रेरी की स्थापना की, जिसमें प्रत्येक में अमर चित्रकथा जैसी 10000 किताबें हैं।
उषा चुमार जो कभी खुद असहाय थी अब महिलाओं की आवाज बन गई है। 7 साल की उम्र में मैला ढोने का काम करती थी उसके साथ ही उनको छूआछूत का भी सामना करना पड़ा। नई दिशा एनजीओ ने उनको मुक्त करवाया और अब सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संगठन की प्रमुख है।
हिवारा बाजार गांव के सरपंच पोपटराव पवार ने सूखे प्रभावित गांव की तस्वीर बदल कर रख दी। अब तक 4.5 लाख पेड़ लगा चुके हैं और 40000 पानी की ट्रेंच खुदवा चुके हैं। उनके गांव में कोई गरीबी रेखा के नीचे नहीं है।
हिवारा बाजार गांव के सरपंच पोपटराव पवार ने सूखे प्रभावित गांव की तस्वीर बदल कर रख दी। अब तक 4.5 लाख पेड़ लगा चुके हैं और 40000 पानी की ट्रेंच खुदवा चुके हैं। उनके गांव में कोई गरीबी रेखा के नीचे नहीं है।
अरुणोदय मंडल एक डॉक्टर हैं और सप्ताहांत में सुंदरबन के सुदूर इलाकों का दौरा करते हैं और 250 लोगों का, जिसमें से ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे वाले रहते हैं का इलाज करते हैं। इसके अलावा इन लोगों के लिए जरूरी मेडिकल सुविधाओं का इंतजाम करते हैं।
राधामोहन और साबरमती किसानों की खुशहाली के लिए काम करते हैं। ये दोनों देशभर का भ्रमण कर किसानों को आर्गोनिक खेती के गुर सिखाते हैं। इन्होंने कई विलुप्त हो रहे बीजों का संरक्षण किया है।
कुशल सर्मा एक वेटेनरी डॉक्टर है और उन्होनें अपना जीवन हाथियों के स्वास्थ्य को समर्पित कर दिया है। पिछले तीन दशकों में वे अब तक 700 हाथियों का इलाज कर चुके हैं।
ट्रनीट्री सायू एक स्कूल अध्यापक है। जयंता हिल इलाके में हल्दी की एक विशेष किस्म को उगाने में उनका अहम योगदान है। वे इस काम के लिए 800 महिलाओं का नेतृत्व करती है और आर्गेनिक खेती के लिए काम करती है।
रवि कन्नन एक कैसर रोग विशेषज्ञ हैं और बराक वैली में उन्होंने 70 हजार कैंसर रोगियों का मुफ्त में इलाज किया है। चेन्नई के रहने वाले रवि कन्नन 2007 में आसाम शिफ्ट हो गए थे। उन्होंने वहां पर एस सर्वसुविधायुक्त अस्पताल भी खोला है।
एस रामकृष्णन दिव्यांग बच्चों के लिए काम करते हैं और पिछले 4 दशकों में वह 800 गांवों के करीब 14000 बच्चों का विस्थापन कर चुके हैं। उन्होंने इन बच्चों के लिए अमर सेवा संगम नामक संस्था को बनाया है। उनका गर्दन के नीचे का हिस्सा लकवे का शिकार है।
सुंदरम वर्मा ने पानी बचाने की तकनीक के सहारे राजस्थान के सूखे शेखावटी इलाके में 50 हजार पेड़ों को उगाया। उनकी तकनीक में प्रति पेड़ एक लीटर पानी की जरूरत रहती है। उन्होंने छह नर्सरियों की भी स्थापना की है।
मुन्ना मास्टर एक मशहूर मुस्लिम भजन गायक है और राजस्थान में जयपुर के रहने वाले हैं, जो राम-कृष्ण के भजनो का गायन करते हैं। उनकी किताब 'श्याम सुंदरी वृंदावन' क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है।
योगी एरोन हेल्पिंग हेंड्स के नाम से पहाड़ी लोगों की तीमारदारी करते हैं। हर साल कई मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं। वो खुद किराए के मकान में रहते हैं और घर के हाल को उन्होंने दवाखाना बना रखा है। वो1983 में यूएसए से यहां पर आए थे।
रोहीबाई सोमा को CSIR ने आदिवासी इलाके में उनके उल्लेखनीय कार्य की वजह से बीज माता का खिताब दिया है। वो महाराष्ट्र केअहमदनगर जिले की रहने वाली है। परंपरागत बीजों के संरक्षण के लिए उन्होंने बीज बैंक की स्थापना की है।
हिम्मतराम भम्भू एक किसान और पर्यावरणविद हैं। रेगिस्तानी इलाकों में वनीकरण के लिए जाने जाते हैं। एक हजार पक्षियों को रोजाना 20 किलो अनाज खिलाते हैं और जोधपुर, जैसलमेर जैसे इलाके के लोगों को पर्यावरण के लिए जागरुक करते हैं।
मोझिक्कल पंकजकाक्षी लुप्त होती कला नाक्कुविद्या पवक्कली को जीवंत करने के लिए जानी जाती है। नाक्कुविद्या पवक्कली एक कठपुतलियों का तमाशा है, जिसको मोझिक्कल पंकजकाक्षी ने देश विदेश में पहचान दिलाई।