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धुंधलके को चीरता एक पत्रकारिता संस्थान और सार्थक चर्चा


राजेश बादल जी इन दिनों भारत की हिंदी पत्रकारिता के अनेक केंद्रों पर जाकर मैदानी पत्रकारिता की हकीकत जानने की इच्छा से यायावर हुए । इस कड़ी में वे ग्वालियर जा पहुंचे । ग्रामीण पत्रकारिता संस्थान और इसके कर्ता धर्ता वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली के न्यौते पर वे वहां गए थे । देव ने करीब पंद्रह बरस पहले सकारात्मक और सरोकारों वाली पत्रकारिता की मशाल जलाए रखने के नज़रिए से इस संस्थान का गठन किया था ।
 इस संस्थान के बारे में राजेश बादल जी कहते है कि काफ़ी हद तक यह संस्थान अपने इस मकसद में कामयाब रहा है । आम तौर पर किसी शहर में सारे पत्रकार एक साथ एक मंच पर शायद ही कभी इकट्ठे होते हों । इसीलिए तो पत्रकारों को तराजू का मेंढक कहा जाता है । मगर देव श्रीमाली के इस केंद्र को सभी पत्रकारों का समर्थन मिल रहा है - यह देखकर वाकई ख़ुशी हुई ।
वरिष्ठ पत्रकार और चार दशक पुराने मित्र हरीश पाठक का यह शहर मायका है । इसलिए आंचलिक पत्रकारिता पर केन्द्रित  उनके पवित्र ग्रंथ पर चर्चा करने के लिए ग्रामीण पत्रकारिता संस्थान से उम्दा कोई और मंच नहीं हो सकता था । हरीश और उनकी ब्रॉडकास्ट पत्रकार पत्नी कमलेश पाठक ग्वालियर पहुंचे। राजेंद्र माथुर फैलोशिप के तहत  दस बरस की  उनकी तपस्या के बाद निकली यह अनमोल कृति आज़ाद भारत की पत्रकारिता पर एक बेजोड़ दस्तावेज़ है । यह मेरी राय है । बाकी जब आप इसे पढ़ेंगे तो मुझसे सहमत होने के सिवा कोई विकल्प आपके पास नहीं रहेगा । हरीश ने इस शोध कृति के पीछे की कहानी के बारे में बताया तो मैंने भी मुख्य वक्ता के तौर पर अपने अनुभव और इस रचना के बारे में अपनी राय रखी ।
साथी पत्रकार रवीन्द्र झारखडिया, कवि घनश्याम भारती और खुद देव श्रीमाली ने अपने संबोधन में आज के दौर में हरीश पाठक के इस प्रयास को महत्वपूर्ण बताया । मध्यप्रदेश एपेक्स बैंक के अध्यक्ष अशोक सिंह और क्षेत्रीय सांसद विवेक शेजवलकर ने भी मंच से ग्वालियर के हरीश की इस उपलब्धि पर खुशी जताई । शिवपुरी के पत्रकार अजय खेमरिया एक अमीर संचालक साबित हुए ।
इस कार्यक्रम के बहाने अंचल के अनेक  पुराने दोस्तों, साथियों और शुभचिंतकों से मिलने का अवसर मिला ।जाने माने शायर मदनमोहन दानिश से मिलना सुखद था।श्री राम विद्रोही, डॉक्टर  केशव पांडे, सुरेश सम्राट, राजेंद्र श्रीवास्तव, राजेंद्र मुदगल, राकेश अचल, नईम कुरैशी, रवि शेखर और गोपाल गुप्ता से मिल कर अच्छा लगा । चालीस साल बाद भाई ,पुराने मित्र और कड़क पुलिस अफसर रहे निरंजन उपाध्याय से मुलाक़ात इस यात्रा की उपलब्धि है । साथ ही उन्होंने कहा कि आज के इस कुहासा भरे वातावरण में अच्छी पत्रकारिता की मशाल जलाए रखिए । 

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