पत्र ,पापड़ और पत्रकारिता,,,,,,सलाम दादा चतुर्वेदी !
आज उनका जन्मदिन है
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हिंदी पत्रकारों के लिए बनारसी दास चतुर्वेदी का नाम कभी न भूलने वाले शिखर संपादकों में से एक है । आज उनका 128 वां जन्मदिन है। पर कितने बड़े बड़े पत्रकार ,संपादक और उनके संगठन उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं ? आज़ादी के बाद नेहरू सरकार पर दबाव डालकर श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम को क़ानूनी शक़्ल देने में उनकी ख़ास भूमिका थी । काम के आठ घण्टे तय कराने वाले आंदोलन की अगुआई बनारसी दास चतुर्वेदी जी ने ही की थी । उनके साथ उस दौर के सभी बड़े पत्रकारों - संपादक साथ खड़े हुए थे । आज़ादी से पहले उनके संपादन में विशाल भारत और मधुकर नाम की पत्रिका ने आज़ादी के आंदोलन में अपना योगदान दिया था । इन पत्रिकाओं को कोलकाता और कुण्डेश्वर से वर्षों तक प्रकाशित करने का काम चतुर्वेदी जी ने किया था । वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश बादल को मिलने का सौभाग्य 1981 में उनके घर आगरा के पास फिरोजाबाद में मिला था। नब्बे साल के होने वाले थे और बीमार रहने लगे थे। लेकिन एक सहयोगी के ज़रिए वे सभी पत्रों का उत्तर लिखवाते थे। संसार में पत्र लिखने और उनका खुद जवाब देने का अगर कोई रिकॉर्ड बनाया जाएगा तो वह उनके नाम ही निकलेगा। हर पत्र का उत्तर पोस्टकार्ड पर देना उनकी नियमित दिनचर्या में शामिल था। जब मई 1985 में उनका निधन हुआ तो राजेश बादल ने उन पर एक लेख लिखा था। हिंदी में यात्रा या यायावर - पत्रकारिता करने वाले संभवतया पहले पत्रकार थे।
कुण्डेश्वर प्रवास में कितने ही क्रांतिकारी उनके साथ रहते थे और किसी को भनक तक नहीं लगती थी। उन्हें पापड़ खाने का ज़बरदस्त शौक था। धूप में घंटों बैठकर अपना काम करना और पापड़ खाते रहना उनका शगल था। आज भी टीकमगढ़ के गुण सागर सत्यार्थी और अवस्थी जी जैसे नब्बे पार महापुरुष हमारे बीच मौजूद हैं ,जिन्होंने दादा चतुर्वेदी को देखा था ,उनके साथ कई बरस बिताए थे और उनकी यादों का ख़ज़ाना समेटे हुए हैं। ये लोग आज के दिन हर साल दादा का जन्म दिन मनाते हैं। दो किलो पापड़ मंगाते हैं और उन्हें खाते हुए धूप में बैठकर उन्हें याद करते हैं। कुण्डेश्वर में उनकी एक विशाल प्रतिमा आज भी लगी है। बीते दिनों श्री राजेश बादल पत्रकारिता के इस तीर्थ में गए थे। इस साल भी जायेंगे। आज तो दादा बनारसी दास चतुर्वेदी को विनम्र श्रद्धांजलि। इस अफ़सोस और वेदना के साथ कि हम अपने इन पेशेवर पूर्वजों के प्रति कब तक क्रूर और कृतघ्न बने रहेंगे ?