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11 सौ बुद्धिजीवियों ने किया नागरिकता कानून को समर्थन, कहा-किसी के बहकावे में न आये



नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर 11 सौ बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने एक साथ आकर सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है। इन सभी लोगों ने सामूहिक बयान जारी कर कहा कि यह कानून पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना के चलते भारत आए शरणार्थियों की सालों पुरानी मांग को पूरा करने वाला है। इस वजह से उन्हें भारत की नागरिकता आसानी से मिल सकेगी। बुद्धिजीवियों ने अपने बयान में कानून के खिलाफ हिंसा करने वालों पर भी नाराजगी जताई है।

बुद्धिजीवियों ने कहा है कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते के फेल होने के बाद कांग्रेस, माकपा जैसे राजनीतिक दलों ने भी इन्हें नागरिकता देने की वकालत की थी। इन सभी ने इस कानून को लाने के लिए मौजूदा मोदी सरकार और भारतीय संसद दोनों को ही धन्यवाद दिया है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह कानून पूरी तरह से संविधान के मुताबिक है। यह किसी भी देश के नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने से रोकने का नहीं है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो।

यह कानून सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर भारत आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने के बारे में है। बुद्धिजीवियों ने कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे सभी लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और कहा कि वे किसी के बहकावे में न आएं। इन बुद्धिजीवियों में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रकाश सिंह, जेएनयू के प्रोफेसर ऐनुल हसन, आइआइएम शिलांग के शिशिर बाजोरिया, नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुनयना सिंह, सोनीपत महिला विवि की कुलपति प्रोफेसर सुषमा यादव, जेएनयू के प्रोफेसर मजहर आसिफ व डॉ. प्रमोद कुमार, लेखक अनिर्बान गांगुली, बीएचयू के प्रोफेसर कौशल किशोर, हार्वर्ड विवि के भानु प्रसाद आदि शामिल हैं।

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