नागरिकता कानून: ममता की जनमत संग्रह की मांग पर यूएन ने कहा, सरकार करे अनुरोध, तो ही होगी प्रक्रिया
जेनेवा. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने भारत में नागरिकता कानून पर जनमत संग्रह की मांग ठुकरा दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को एक रैली में सरकार को चुनौती दी थी कि अगर उसे नागरिकता संशोधन कानून पर इतना भरोसा है, तो वह इस पर यूएन की देखरेख में जनमत संग्रह करा ले। हालांकि, शुक्रवार को ममता ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने कानून पर जनमत संग्रह की नहीं, बल्कि ओपनियन पोल कराने की बात कही थी।
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन डुजैरिक ने शुक्रवार को कहा कि यूएन जनमत संग्रह से जुड़े किसी भी मामले में सिर्फ राष्ट्रीय सरकार के अनुरोध पर ही जुड़ता है। डुजैरिक ने कहा कि यूएन की स्टैंडर्ड पॉलिसी यही रही कि हम सरकार की मांग पर ही किसी देश के चुनाव या जनमत संग्रह से जुड़ते हैं। उन्होंने कहा कि यह बयान सिर्फ ममता बनर्जी की मांग पर ही नहीं, बल्कि यूएन जिस तरह काम करता है उस पर आधारित है।
भारत में प्रदर्शनों पर करीब से नजर
नागरिकता संशोधन कानून पर हो रहे प्रदर्शन पर डुजैरिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र काफी करीब से भारत के हालात देख रहा है। उन्होंने प्रदर्शन में हिंसक घटनाओं और मौतों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने चाहिए और सुरक्षाबलों को भी कार्रवाई में संयम बरतना चाहिए।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सम्मान होना चाहिए
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष तिज्जानी मोहम्मद बंदे की प्रवक्ता रीम अबाजा ने भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन का अधिकार जरूरी है, लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन का। विरोध शांति से जताया जाए तो उसका सम्मान होना चाहिए।
नागरिकता कानून पर मलेशियाई प्रधानमंत्री का बयान गलत: विदेश मंत्रालय
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के नागरिकता कानून पर दिए बयान को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है। महातिर ने शुक्रवार को कुआलालंपुर में समिट के बाद कहा था- “भारत जो कि एक धर्मनिरपेक्ष देश होने का दावा करता है, वहां मुस्लिमों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की कार्रवाई की जा रही है। अगर हम यह सब यहां करने लगेंगे, तो आप जानते हैं क्या होगा, हर तरफ हंगामा हो जाएगा। देश में अस्थिरता पैदा होगी और हर कोई परेशान होगा।
इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने महातिर को जवाब दिया। मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि मलेशिया के प्रधानमंत्री को भारत के आंतरिक मुद्दों पर बोलने से बचना चाहिए। खासकर तब जब उनके पास तथ्यों की जानकारी न हो। मंत्रालय ने कहा कि नागरिकता कानून से भारत में रह रहे लोगों की नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस कानून से सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के पीड़ित धर्मों को नागरिकता देने में तेजी लाई जाएगी। इसलिए महातिर गलत बयानी से बचें।