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आजादी के बाद डाक टिकट निकालने में भी हुआ भेदभाव


किसी भी देश में डाक टिकट निकालने का उद्‌देश्य होता है कि उस देश के महान लोगों को याद रखा जा सके। भारत में भी समय-समय पर महापुरुषों या ऐतिहासिक घटनाओं को याद रखने के लिए डाक टिकट निकाले गए हैं। मगर आश्चर्य है कि इन टिकटों में एक खास पैटर्न दिखाई देता है। यह पैटर्न वैसा ही है, जैसा कि देश में पुल, बांध, सड़क, शहर या बड़े संस्थानों के नाम चुनिंदा लोगों पर रखने में दिखाई देता है।
देश में स्वतंत्रता के पश्चात अब तक महात्मा गांधी पर लगभग 62 डाक टिकट, जवाहर लाल नेहरू पर 18, इंदिरा गांधी पर 8 टिकट निकाले गए हैं। मगर आश्चर्य की बात है कि स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों पर डाक टिकट निकालने में सरकारों ने लापरवाही की। लोकमान्य टिलक पर स्वतंत्रता के 9 वर्ष बाद, विपिनचंद्र पाल पर 11 वर्ष, लाला लाजपतराय पर 16 वर्ष, गणेश शंकर विद्यार्थी पर 15 वर्ष, सरदार पटेल पर 18 वर्ष, कुंवरसिंह पर 19 वर्ष, सरदार भगतसिंह पर 21 वर्ष, शिवराम हरि राजगुरु पर 66 वर्ष बाद एक-एक टिकट जारी किया। जबकि भगत सिंह के साथी सुखदेव थापर पर तो अब तक डाक टिकट जारी नहीं हुआ है।
इसी तरह सेनापति बापट, रानी चेनम्मा पर 30 वर्ष बाद, मास्टर सूर्यसेन पर 31 वर्ष, भाई परमानंद पर 32 वर्ष बाद तथा वीर सावरकर पर 28 मई 1970 को डाक टिकट निकला। हेमू कालानी, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे पर 36 वर्ष, चंद्रशेखर आज़ाद, रानी अवन्तिबाई, रानी दुर्गावती पर 41 वर्ष, खुदीराम बोस पर 43 वर्ष, ऊधमसिंह, मदनलाल ढींगरा पर 45 वर्ष, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान पर 50 वर्ष बाद टिकट जारी हुआ। जबकि फांसी पर चढ़े रोशनसिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी पर अब तक टिकट नहीं निकाला है।

 

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