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गुना में डूबी सिंधिया की नाव, नहीं चला राजपरिवार का जादू



ग्वालियर। ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर हुई करारी हार के साथ ही सिंधिया राजपरिवार का तिलिस्म भी गुरुवार को टूट गया। खास बात यह है कि 1984 में एक छोटी सी रियासत दतिया के राजपरिवार के सदस्य कृष्ण सिंह जूदेव ने इस तिलिस्म पर पहली चोट की थी। इस बार ज्योतिरादित्य के प्रतिनिधि रहे शख्‍स ने राजपरिवार के तिलिस्म को चकनाचूर कर दिया है।

ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया राजपरिवार और राजनीति के बीच चोली-दामन सा साथ रहा है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में इस परिवार के सदस्यों का रसूख लंबे समय से कायम है। एक दौर था जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की सहमति से भाजपा और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया की सहमति से कांग्रेस में टिकट वितरण होता था। नई पीढ़ी में राजपरिवार की कमान ज्योतिरादित्य के हाथों में थी। इस चुनावी समर में वे खुद ही शिकस्त खा बैठे।

बुआ इंदिरा तो भतीजे मोदी लहर में डूबे 
1984 में वसुंधराजे सिंधिया भिंड लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट से मैदान में उतरी थीं। उनके सामने कांग्रेस से दतिया राजपरिवार के कृष्ण सिंह जूदेव सामने थे। बेटी वसुंधरा का राजमाता वियजाराजे सिंधिया ने खूब प्रचार किया, लेकिन इंदिरागांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव की लहर में वसुंधरा राजे टिक नहीं सकीं। उन्हें 106757 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के जूदेव को 194160 वोट मिले।

अब जीत की गारंटी नहीं
ग्वालियर और गुना सीट पर जब भी सिंधिया राजपरिवार का कोई भी सदस्य चुनाव मैदान में उतरा तो हारा नहीं, चाहे फिर पार्टी कांग्रेस रही हो या भाजपा। जनसंघ में आने से पहले राजमात वियजाराजे सिंधिया यहां कांग्रेस से जीतीं। बाद में माधवराव सिंधिया जनसंघ, निर्दलीय व कांग्रेस से जीतते रहे। इस बार गुना-शिवपुरी सीट पर हुई ज्योतिरादित्य की करारी हार से यह तिलिस्म भी हमेशा के लिए टूट गया।

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