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साध्‍वी प्रज्ञा पर लगे आरोप अभी तक सिद्ध नहीं, इसलिए लड़ सकती है चुनाव



भोपाल। 2019 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश की निगाहें भोपाल लोकसभा सीट पर टिक गई है। यहां एक-दूसरे के धुर विरोधी दिग्विजय सिंह और साध्वी प्रज्ञा भारती चुनाव मैदान में आमने-सामने हैं। भाजपा से प्रत्याशी घोषित होने के बाद विपक्ष का आरोप है कि साध्वी प्रज्ञा भारती स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर हैं, इसलिए कोर्ट को उनके चुनाव लड़ने के मामले पर हस्तक्षेप करना चाहिए। सोशल मीडिया पर भी साध्वी के अदालत में कानूनी स्थिति को लेकर कई तरह के भ्रम की स्थिति है। वहीं, साध्वी के वकील का कहना है कि उन पर दोष सिद्ध नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव लड़ने के लिए कोर्ट से मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।

साध्वी प्रज्ञा पर चल रहे केस के कानूनी पहलू को लेकर नईदुनिया ने उनके वकील एम. रवि से बात की। रवि के मुताबिक, साध्वी पर दो केस चल रहे थे। सुनील जोशी हत्याकांड में देवास की अदालत उन्हें बरी कर चुकी है, वहीं मालेगांव ब्लास्ट 2008 के केस में अब तक उन पर दोष सिद्ध नहीं हुए हैं। कानून के मुताबिक, दोष सिद्ध नहीं होने की स्थिति में चुनाव लड़ने के लिए कोर्ट से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है।

साध्वी पर चले मुकदमों की जानकारी
पहला केस - 29 दिसंबर 2007 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे सुनील जोशी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में साध्वी प्रज्ञा के अलावा सात अन्य लोगों के नाम सामने आए थे। मप्र के देवास की अदालत में उनके खिलाफ केस चला। फरवरी 2017 में अदालत ने पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण उन्हें बरी कर दिया। हालांकि साध्वी प्रज्ञा के वकील एम. रवि का दावा है कि उन्हें सबूतों के अभाव में बरी नहीं किया, बल्कि उन्हें हत्याकांड में शामिल नहीं पाया गया।

दूसरा केस - 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में दो बम धमाकों में सात लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से ज्यादा घायल हो गए थे। बम विस्फोट में शामिल होने के आरोप में साध्वी प्रज्ञा सहित अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। उन पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) और गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत मामला चला। बाद में उन पर मकोका के तहत मामला हटा लिया गया, लेकिन यूएपीए के तहत मामला चला। मुंबई की विशेष अदालत में अभी भी केस चल रहा है। साध्वी और अन्य आरोपित जमानत पर बाहर हैं। साध्वी प्रज्ञा को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत मिली थी। हालांकि उनके वकील एम. रवि के मुताबिक, अदालत सभी मामलों पर विचार करके जमानत देती है। उसमें स्वास्थ्य के साथ-साथ यह भी ध्यान दिया जाता है कि आरोपित साक्ष्य को प्रभावित न करे। अभी मुंबई की विशेष अदालत में उन पर दोष सिद्ध करने को लेकर जिरह चल रही है।

कानूनी नहीं, नैतिक मामला
मप्र हाई कोर्ट के वकील आयुष वाजपेयी के मुताबिक, मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा आरोपित हैं, लेकिन उन पर आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। इसलिए कानूनी तौर पर चुनाव लड़ने से उन्हें रोका नहीं जा सकता, लेकिन यह मामला नैतिक तौर से जुड़ा है। जिसके खिलाफ इस तरह के आरोप हों, उसे नैतिकता के आधार पर फैसला करना चाहिए। पिछले दिनों चुनाव आयोग ने भी इस मामले में यही कहा था कि रिप्रजेंटेटिव एक्ट के तहत जब तक दोष सिद्ध न हो जाए, किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते।

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