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दांव पर कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं का सियासी भविष्य


भोपाल। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने कई दिग्गजों को मैदान में उतारने की तैयारी में है। कुछ नेता तो खुद दावेदारी कर रहे हैं, जबकि पिछले चुनावों में उनकी स्थिति ठीक नहीं रही थी। इन चुनावों के परिणामों पर ऐसे नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा है। जिन दिग्गज नेताओं को यह मौका दिया जा रहा है, वह अंतिम साबित हो सकता है। इनमें से कुछ तो अपने अस्तित्व के लिए दांव खेल रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लोकसभा चुनाव के लिए कई नेताओं ने अपनी दावेदारी पेश कर रखी है।

इन नेताओं में मुरैना से रामनिवास रावत, ग्वालियर से अशोक सिंह, सतना से राजेंद्र सिंह, सीधी से अजय सिंह और खंडवा से अरुण यादव की दावेदारी चल रही है। हालांकि इनमें से कुछ नेताओं के नाम रायशुमारी और सर्वे के आधार पर स्क्रीनिंग कमेटी ने ही चर्चा के बाद बाहर कर दिए हैं। लोकसभा चुनाव 2009 में मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन, धार से गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी जीत गए थे, लेकिन अब पार्टी को दोनों सीट पर उनसे ज्यादा मजबूत
प्रत्याशी नहीं दिखाई दे रहा है। अगर वे यह चुनाव हारते हैं तो पार्टी उनके विकल्प को तलाशना शुरू करेगी। सतना से दावेदारी कर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र सिंह को भी संगठन की तरफ से सीट पर जीत की शर्त लगाई गई है और अगर वे हारते हैं तो उन्हें भी संगठन या सरकार में वैकल्पिक स्थान मिलने की संभावना कम हो जाएगी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को एक लोकसभा और करीब डेढ़ दशक बाद लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के कारण संगठन ने होशंगाबाद में उनके नाम की चर्चा के बाद भी ध्यान नहीं दिया।
अजय सिंह 2008 और 2013 में सदन में कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे। मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें एक फीसदी वोट के अंतर से हार मिली और 2018 विस चुनाव में भी वे हार गए। अब पार्टी उन्हें सीधी से लोकसभा चुनाव मैदान में उतारना चाहती है।

स्थिति : सिंह सतना से टिकट चाह रहे हैं, क्योंकि सीधी में भितरघात की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।
अरुण यादव पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद पचौरी के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में हार गए। हाल ही में वे शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ
बुदनी से विस चुनाव हारे हैं।

स्थिति : साढ़े चार साल प्रदेश कांग्रेस चलाने और ओबीसी का वर्ग को साधने के लिए उन्हें टिकट मिलेगा। हार से उन्हें नुकसान होगा।

रामनिवास रावत सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक हैं। ये 2009 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर से एक लाख से ज्यादा मतों से हारे थे। 2013 में विधानसभा चुनाव जीते, लेकिन तीन महीने पहले वे हार गए जबकि ओबीसी वोट साधने के लिए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।

स्थिति : विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार से पार्टी में कमजोर स्थिति होगी। सिंधिया को झटका लगेगा।

अशोक सिंह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समर्थक माने जाते हैं। ग्वालियर की स्थानीय राजनीति में सिंधिया के साथ पटरी नहीं बैठती है। 1998 तक कांग्रेस के कब्जे में रही इस सीट पर अशोक सिंह लगातार दो लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। इस बार फिर वे टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

स्थिति : लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव हारने से संगठन में स्थिति कमजोर होगी।

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