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पुण्‍य फलदायी होता है अधिकमास में धर्म-कर्म, वर्जित होते है मांगलिक कार्य



हिन्दू शास्त्रों में 'अधिक मास' को बड़ा ही पवित्र माना गया है। इसलिए अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, अधिकमास में व्रत, पवित्र नदियों में स्नान और तीर्थ स्थानों की यात्रा करने से बहुत पुण्य मिलता है।

वर्ष 2018 में अधिक मास 16 मई से 13 जून के मध्य रहेगा। इस वर्ष ज्येष्ठ मास की अधिकता रहेगी। यानी सीधी भाषा में कहें, तो इस साल दो ज्येष्ठ महीने होंगे। 13 जून तक विवाह, गृह प्रवेश जैसे कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

दान और धार्मिक आयोजन का मिलता है फल
अधिक मास में किए दान-पुण्य और धार्मिक आयोजन का कई गुना फल देने वाले बताए गए हैं। सूर्य वर्ष के 12 महीनों में प्रतिमाह 12 राशियों में संचरण होता है, जिससे संवत्सर बनता है। अमावस्या से अमावस्या तक जिस माह में सूर्य का किसी भी राशि में संक्रमण नहीं होता है, तो वह अधिकमास कहलाता है।

शुभ काम नहीं किए जाते हैं इस महीने में
कभी-कभी एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या में दो बार संक्रांति आ जाती है, उसे क्षय मास कहते हैं। अधिकमास और क्षय मास दोनों ही मलमास माने जाते हैं। इसलिए इनमें विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, यज्ञोपवीत जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जात हैं।

ऐसे बनता है अधिकमास या मलमास
पंचांगानुसार तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से करीब 10/11 दिन छोटा होता है। इस तरह तिथियों का क्षय होने से तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है। तिथियों का क्षय होते-होते तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है।

इस कारण हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। जिस चंद्र मास में सूर्य संक्राति नहीं होती, वह अधिक मास कहलाता है और जिस चंद्र मास में दो संक्रांतियों का संक्रमण हो रहा हो उसे क्षय मास कहते हैं।

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