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अदालत को न बनाया जाये राजनीतिक दंगल का अखाडा : सुप्रीम कोर्ट


हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) से संबंधित मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता ने कोर्ट में प्रदेश मंत्रिमंडल के उस निर्णय की जानकारी दी, जिसमें एचपीसीए के सभी मामलों को राजनीति से बताया था। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र के वकील ने आपत्ति दर्ज करवाई, जबकि एचपीसीए के वकील सरकार के निर्णय को आधार बनाकर केस समाप्त करने की मांग करते रहे। इसे लेकर दोनों अधिवक्ताओं में तीखी बहस हुई। जस्टिस एके सीकरी ने दोनों पक्षों की अपील दलील पर नाराजगी जताते हुए इस मामले की सुनवाई 3 मई तक टाल दी।
वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में अप्रैल 2014 को विजिलेंस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 420, 201 और 120 बी के तहत और भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम की धारा 13 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। इस मामले में विजिलेंस ने अनुराग समेत 13 लोगों को आरोपी बनाया है। आरोपियों के खिलाफ धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम जमीन पर अतिक्रमण का आरोप है। महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार ने इस मामले को राजनीति से प्रेरित माना है। 

एचपीसीए के वकील पीएस पटवालिया ने दलील दी कि जब वाद दाखिल किया था तो सीएम वीरभद्र थे, लेकिन अब वह सीएम नहीं है। ऐसे में वीरभद्र को प्रतिवादियों की लिस्ट से हटाया जाए। उन्होंने कोर्ट से मामला रद्द करनी की अपील की। पूर्व सीएम वीरभद्र के वकील अनूप जॉर्ज चौधरी इस पर अड़ गए। वीरभद्र के वकील ने कहा कि वह इस केस में पक्ष बनने के लिए अलग से अर्जी लगाना चाहते हैं। इसी बात पर दोनों अधिवक्ताओं में तीखी बहस हो गई।

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