बच्चों के सुखद भविष्य के लिए स्वयं को भी बदलें
बच्चे पर दबाव न डालें। कभी भी जबरदस्ती न करें। भूलकर भी हिंसा न करें, बहुत प्रेम से, अपने जीवन के परिवर्तन से, बहुत शांति से, बहुत सरलता से बच्चे को सुझाएं। आदेश न दें, यह न कहें कि ऐसा करो। क्योंकि जब भी कोई ऐसा कहता है, ऐसा करो! तभी भीतर यह ध्वनि पैदा होती है, सुनने वाले में कि नहीं करेंगे। यह बिल्कुल सहज है। उससे यह मत कहना कि ऐसा करो। उससे यही कहना कि मैंने ऐसा किया और आनंद पाया, अगर तुम्हें आनंद पाना हो तो इस दिशा में सोचना। उसे समझाना, उसे सुझाव देना, आदेश नहीं, उपदेश नहीं। उपदेश और आदेश बड़े खतरनाक सिद्ध होते हैं। उपदेश और आदेश बड़े अपमानजनक सिद्ध होते हैं।
छोटे बच्चे का बहुत आदर करना, क्योंकि जिसका हम आदर करते हैं उसको ही केवल हम अपने हृदय के निकट ला पाते हैं। यह हैरानी की बात मालूम पड़ेगी। हम तो चाहते हैं कि छोटे बच्चे बड़ों का आदर करें। हम उनका कैसे आदर करें! लेकिन अगर हम चाहते हैं कि छोटे बच्चे आदर करें मां-बाप का, तो आदर देना पड़ेगा। यह असंभव है कि मां-बाप अनादर दें और बच्चों से आदर पा लें, यह असंभव है।
बच्चों को आदर देना जरूरी है और बहुत आदर देना जरूरी है। उगते हुए अंकुर हैं, उगता हुआ सूरज हैं। हम तो व्यर्थ हो गए, हम तो चुक गए। अभी उसमें जीवन का विकास होने को है। यह परमात्मा ने एक नए व्यक्तित्व को भेजा है, वह उबर रहा है। उसके प्रति बहुत सम्मान, बहुत आदर जरूरी है। आदरपूर्वक, प्रेमपूर्वक, खुद के व्यक्तित्व के परिवर्तन के द्वारा उस बच्चे के जीवन को भी परिवर्तित किया जा सकता है।
अंतर्मुखी कोई तभी बन सकता है, जब भीतर आनंद की ध्लनि गूंजने लगे। हमारा चित्त वहीं चला जाता है, जहां आनंद होता है। अभी मैं यहां बोल रहा हूं, अगर कोई वहां एक वीणा बजाने लगे और गीत गाने लगे, तो फिर आपको अपने मन को वहां ले जाना थोड़ा ही पड़ेगा, वह चला जाएगा। आप अचानक पाएंगे कि आपका मन मुझे नहीं सुन रहा है, वह वीणा सुनने लगा। मन तो वहां जाता है, जहां सुख है, जहां संगीत है, जहां रस है।
बच्चे बहिर्मुखी इसलिए हो जाते हैं कि वे मां-बाप को देखते हैं, दौड़ते हुए बाहर की तरफ। एक मां को वे देखते हैं बहुत अच्छे कपड़ों की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं, गहनों की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं बड़े मकान की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं बाहर की तरफ दौड़ते हुए। उन बच्चों का भी जीवन बहिर्मुखी हो जाता है।
अगर वे देखें एक मां को आंख बंद किए हुए और उसके चेहरे पर आनंद झरते हुए देखें और वे देखें एक मां को प्रेम से भरे हुए और वे देखें एक मां को छोटे मकान में भी प्रपुल्लित और आनंदित, और वे कभी-कभी देखें कि मां आंख बंद कर लेती है और किसी आनंद लोक में चली जाती है। वे पूछेंगे कि यह क्या है? खेहां चली जाती हो? वे अगर मां को ध्यान में और प्रार्थना में देखें, वे अगर किसी गहरी तल्लीनता में उसे डूबा हुआ देखें, वे अगर उसे बहुत गहरे प्रेम में देखें, तो वे जानना चाहेंगे कि कहां जाती हो? यह खुशी कहां से आती है? यह आंखों में शांति कहां से आती है? यह प्रपुल्लता चेहरे पर कहां से आती है? क्षह सौंदर्य, यह जीवन कहां से आ रहा है?
वे पूछेंगे, वे जानना चाहेंगे। और वही जानना, वही पूछना... वही जिज्ञासा, फिर उन्हें मार्ग दिया जा सकता है।
तो पहली जरूरत है कि अंतर्मुखी होना खुद सीखें। अंतर्मुखी होने का अर्थ है, घड़ी-दो-घड़ी को चौबीस घंटे के जीवन में सब तरह से चुप हो जाएं, मौन हो जाएं। भीतर से आनंद को उटने दें, भीतर से शांति को उटने दें। सब तरह से मौन और शांत होकर घड़ी-दो-घड़ी को बैठ जाएं।
जो मां-बाप चौबीस घंटे में घंटे-दो-घंटे को बी मौन होकर नहीं बैठते, उनके बच्चों के जीवन में मौन नहीं हो सकता। जो मां-बाप घंटे-दो-घंटे घर में प्रार्थना में लीन नहीं हो जाते हैं, ध्यान में नहीं चले जाते हैं, उनके बच्चे कैसे अंतर्मुखी हो सकेंगे?
बच्चे देखते हैं मां-बाप को कलह करते हुए, द्वंद्व करते हुए, संघर्ष करते हुए, लड़ते हुए, दुर्वचन बोलते हुए। बच्चे देखते हैं, मां-बाप के बीच कोई बहुत गहरा प्रेम का संबंध नहीं देखते, कोई शांति नहीं देखते, कोई आनंद नहीं देखते, उदासी, ऊब, घबड़ाहट, परेशानी देखते हैं, ठीक इसी तरह की जीवन की दिशा उनकी हो जाती है।
बच्चों को बदलना हो तो खुद को बदलना जरूरी है। अगर बच्चों से प्रेम हो तो खुद को बदल लेना एकदम जरूरी है। जब तक आपके कोई बच्चा नहीं था, तब तक आपकी कोई जिम्मेवारी नहीं थी। बच्चा होने के बाद एक अद्भुत जिम्मेवारी आपके ऊपर आ गई। एक पूरा जीवन बनेगा या बिगड़ेगा और वह आप पर निर्भर हो गया। अब आप जो भी करेंगी उसका परिणाम उस बच्चे पर होगा।
अगर वह बच्चा बिगड़ा, अगर वह गलत दिशाओं में गया, अगर दुख और पीड़ा में गया, तो उसका पाप किसके ऊपर होगा? भच्चे को पैदा करना आसान, लेकिन ठीक अर्थों में मां बनना बहुत कठिन है। बच्चे को पैदा करना तो बहुत आसान है। पशु-पक्षी भी करते हैं, मनुष्य भी करते हैं, भीड़ बढ़ती जाती है, दुनिया में। लेकिन इस भीड़ से कोई हल नहीं है। मां होना बहुत कठिन है।
अगर दुनिया में कुछ स्त्रियां भी मां हो सकें तो सारी दुनिया दूसरी हो सकती है। मां होने का अर्थ है, इस बात का उत्तरदायित्व कि जिस जीवन को मैंने जन्म दिया है, अब उस जीवन को ऊंचे-से-ऊंचे स्तरों तक, परमात्मा तक पहुंचाने की दिशा पर ले जाना मेरा कर्तव्य है। और इस कर्तव्य की छाया में मुझे खुद को बदलना होगा। क्योंकि जो व्यक्ति भी दूसरे को बदलना चाहता हो उसे अपने को बदले बिना कोई रास्ता नहीं है।