भगवान के अवतारों का वर्णन नहीं बल्कि कलयुग के संस्कारों महासागर है श्रीमद् भागवत कथा
सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक ने कहा
नर को नारायण के साक्षात दर्शन करवाने वाली श्रीमद् भागवत कथा भगवान के अवतारों का वर्णन मात्र नहीं है बल्कि स्वयं में साक्षात संस्कारों का महासागर है, जिसमें एक बार डुबकी लगा लेने वाला जन्म-जन्मांतर के लिये तर जाता है ! यह मनोरंजन की नहीं मनोमंथन की कथा है जिसका सार आत्मा में परमात्मा के दर्शन करना है !
उक्त आशीर्वचन मेवाड़ मरूधरा के युवा संतश्री अनुजदासजी महाराज ने रविवार को स्टेशन मार्ग स्थित नहर की पुलिया के समीप आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पांडाल में उपस्थित श्रद्धालुजनों के समक्ष कथा वर्णन करते हुए प्रदान किए। इस दौरान उन्होंने कहा कि सतयुग में भक्त प्रहलाद जैसे पुत्र हुए जिन्होंने नारायण की भक्ति से पिता को मुक्ति प्रदान की, त्रेता में श्रवणकुमार जैसे पुत्र हुए जिन्होंने कांधो पर कावड़ रखकर माता-पिता को भक्ति प्रदान की, द्वापर में एसे पुत्र हुए जिन्होंने अपनी जवानी पिता को दान करके पिता को शक्ति प्रदान की लेकिन आज कलयुग है ओर आज वही पूत सपूत है जो अपने मां-बाप को प्रेम से दो वक्त की रोटी देकर उनकी सम्मानभाव से सेवा करे !