क्रोध मनुष्य के पतन का कारण
भोपाल। क्रोध मनुष्य के जीवन में पतन का सबसे बड़ा कारण है। क्रोध आत्मा की विकृति है और विकृत आत्मा कभी भी अपनी संस्कृति की ओर अग्रसर नहीं हो सकती। क्रोध में कभी भी शोध नहीं होता, न ही आत्मबोध होता है, बल्कि क्रोध केवल विरोध को आमंत्रण देता है। यह सद्विचार गुरुवार को मुनिश्री प्रणाम सागर महाराज ने समसगढ़ तीर्थ में आशीष वचन के दौरान व्यक्त किए।
समसगढ़ तीर्थ में साधना कर रहे मुनिश्री प्रणाम सागर महाराज के सानिध्य में विशेष पूजा-अर्चना के बाद श्री कल्याण मंदिर विधान के अर्ध समर्पित किए गए। इसके बाद सैंकड़ों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में मुनिश्री के आशीष वचन हुए। उन्होंने कहा कि हमारा क्रोध हमारे विरोधी का मित्र है, जब क्रोध व विरोधी मिल जाते हैं तो एक ज्वालामुखी का निर्माण होता है। लेकिन यह क्रोधरूपी ज्वालामुखी दूसरों को नहीं बल्कि स्वयं को नष्ट करने का काम करता है।
मुनिश्री ने कहा कि क्रोध वर्तमान ही नहीं भूत और भविष्य को बिगाड़ देता है। क्रोध के कारण सालों पुरानी हमारी बनी हुई प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है। क्रोध भविष्य की उन्नति में अवरोध पैदा करता है हमारी चिंतन शक्ति को कमजोर कर देता है फिर हमारा विकास नहीं विनाश होना शुरू हो जाता है। क्रोध हमारा जन्म जन्मांतर का शत्रु है। प्रवक्ता अंशुल जैन ने बताया कि मुनिश्री प्रमाण सागर महाराज का समसगढ़ के के बाद नेहरू नगर जैन मंदिर की ओर पदविहार होगा। उनके सानिध्य में नेहरु नगर जैन मंदिर एवं साकेत नगर जैन मंदिर में सिद्धचक्र महामंडल विधान के आयोजन होंगे।
-आज समसगढ़ में भगवान शांतिनाथ का होगा महामस्तिकाभिषेक
होली के अवसर पर शुक्रवार को समसगढ़ में मुनिश्री प्रणाम सागर महाराज के सानिध्य में सुबह 7 बजे से हजारों वर्ष पुरानी प्रतिमाओं का महामस्तकाभिषेक किया जाएगा। इस अवसर पर भगवान शांतिनाथ, भगवान आदिनाथ, भगवान अरहनाथ की भव्य व प्राचीन खड़गासन प्रतिमाओं का महामस्तिकाभिषेक किया जाएगा। साथ ही श्री भक्तांबर मंडल विधान के साथ ही यहां मुनिश्री प्रणाम सागर महाराज के आशीष वचन भी होंगे।