साधक वही जो निरंतर साधना पथ पर रत रहता है
एक साधक का सबसे साहसिक एवं विश्वसनीय साथी है उसका दृढ़ संकल्प
संकल्प जो हर अवरोध में भी राह है, नित निरंतर उत्साह है
संकल्प शक्ति जीवन निर्माण में सहायक
जीवन में सफलता की कुंजी - दृढ़ संकल्प
संकल्प ही वर्तमान युग की पुकार
स्व-जागृति ही संकल्प शक्ति का आधार
जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए संकल्प जरुरी
हर माह की भांति इस बार भी दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में मासिक भंडारे का कार्यक्रम बड़े ही उत्साहपूर्वक आयोजित किया गया। जिसमें दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों द्वारा दिए विचारों और भक्ति से ओतप्रोत भजनों द्वारा कार्यक्रम को शोभायमान किया गया।
साध्वी जी ने अपने विचारों को प्रकट करते हुए बताया कि सत्य पथ के साधक वही है, जो अपने साध्य को साधने की साधना में निरंतर रत रहते है। साध्य तक के इस सफर में साधक का सबसे साहसिक और विश्वसनीय साथी होता है - उसका संकल्प, जो सतत परिवर्तन है! संकल्प है, जो हर अवरोध में भी राह है! हर विरोध में भी उत्साह है! एक बीज जब अंकुरित होने का संकल्प धारण करता है, तो धरती की कठोरता नहीं देखता, आँधियों के वेग नहीं देखता, सूरज के बरसते अंगारे नहीं देखता! वह तो बस सतत संघर्ष कर, अपना सर्वस्व न्यौछावर कर, धरती का वक्ष चीर कर, सिर उठाकर बढ़ना जानता है! एक नदी जब समुद्र-मिलन का संकल्प धारण कर लेती है, तो अवरोधी चट्टानों को नहीं देखती, शिलाखण्डों से टकराव नहीं देखती, जल-कणों को सुखा देने वाली प्रचण्ड उष्णता नहीं देखती। वह तो बस अथक-अनवरत अपनी धुन में बहना जानती है।
ठीक यही एक संकल्पवान साधक की कहानी है। सिर्फ संकल्प, अन्य कोई विकल्प नहीं - यही धुन धारण कर एक साधक साध्य की ओर सतत चलता है। हनीबाल कहते थे - मैं राह ढूँढ़ लूँगा या फिर नई राह बना लूँगा, पर चलना नहीं छोडूँगा। ऐसा होता है, एक साधक का अटूट संकल्प! स्वामी विवेकानंद कहा करते थे - ‘हे साधकों! एक लक्ष्य निर्धारित करो और फिर उस लक्ष्य को अपना जीवन बना लो! उसी को सोचो! उसी के सपने लो! उसी को जिया! तुम्हारा मस्तिष्क, मांस-पेशियाँ, नस-नाडि़याँ, देह का पोर-पोर उस लक्ष्य से भरपूर हो! उसके अलावा अन्य कोई विचार तुम्हारा स्पर्श तक न करे। यही संकल्प की राह है।’ इसी संकल्प की राह से गुजरकर महान युगों और युगपुरूषों का गठन हुआ। गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे संकल्प धारण किया था - ‘चाहे मेरी अस्थियाँ सूख जाएँ, रगों में रक्त की एक बूँद शेष न बचे- पर मैं डटा रहूँगा!’ इसीलिए समाज को निर्वाण प्राप्त महात्मा बुद्ध मिले।
स्वामी जी ने उपस्थित भक्त-श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए यही प्रेरणा दी कि हे साधकों! आज इसी संकल्प की वर्तमान युग को पुकार है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने जो विश्व शांति का लक्ष्य स्थापित किया है, उसे भेदने की बेला है। हम अपने-अपने संकल्प बाणों द्वारा ही गुरुवर के इस लक्ष्य का भेदन कर सकते हैं। याद रहे, कोई भय, कोई आलस्य, कोई नकारात्मकता, कोई विरोध हमारे इस बाण-संधान को भंग न कर सके। हमारा संकल्प-बाण किसी भी परिस्थिति में न चुके। सीधे लक्ष्य के हृदय का भेदन करे। ‘ब्रह्मज्ञान’ द्वारा सबके भीतर इसी विवेक को जाग्रत किया जाए। इससे न सिर्फ उनका स्वयं को लाभ होगा अपितु सारे विश्व में स्वस्थ और शांत वातावरण का निर्माण होगा।