खाचरौद में एकात्म यात्रा का भव्य स्वागत हुआ जन-संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया
उज्जैन । आदिशंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने के लिये धातु संग्रहण का कार्य जारी है। एकात्म यात्रा के माध्यम से जन-जन तक आदिशंकराचार्य का अद्वैतवाद के सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार सन्तजनों द्वारा किया जा रहा है। एकात्म यात्रा 20 दिसम्बर की रात को खाचरौद पहुंची। आज 21 दिसम्बर को खाचरौद में यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। जन-संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। जन-संवाद कार्यक्रम में विधायक श्री दिलीपसिंह शेखावत सहित स्थानीय जनप्रतिनिधिगण मौजूद थे। स्थानीय सन्तगणों द्वारा एकात्म यात्रा प्रमुख परमात्मानन्दजी महाराज एवं अन्य साधु-सन्तों का हार्दिक स्वागत किया गया।
जन-संवाद कार्यक्रम में राजकोट के सन्त एवं एकात्म यात्रा का नेतृत्व कर रहे स्वामी परमानन्द सरस्वतीजी ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शंकराचार्य के सिद्धान्त का प्रचार कर जन-जन का कल्याण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व में कई संस्कृतियां खड़ी हुई और नष्ट हो गई, किन्तु भारतीय संस्कृति आज भी खड़ी है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य का जन्म संक्रमणकाल में हुआ था। जब आन्तरिक एवं बाहरी विभाजन गंभीर स्थिति में था। शंकराचार्य ने आध्यात्मिक व धार्मिक साम्राज्य की स्थापना की है। स्वामी परमात्मानन्दजी ने कहा कि वेदान्त दर्शन से ही आन्तरिक विकास हो सकता है। उन्होंने आमजन का आव्हान किया कि वे समरसता के साथ जीवन जियें।
यात्रा खाचरौद से रवाना होकर मड़ावदा, कमठाना, भाटपचलाना, कमेड़, रूणीजा होते हुए बड़नगर पहुंची। बड़नगर में जन-संवाद के बाद एकात्म यात्रा खरसोदखुर्द, धुरेरी, सरसाना, इंगोरिया, दंगवाड़ा, बलेड़ी, नरसिंगा होते हुए देर रात इन्दौर जिले में प्रवेश करेगी। उल्लेखनीय है कि उज्जैन से प्रारम्भ होकर एकात्म यात्रा इन्दौर, देवास, राजगढ़, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, श्योपुर, मुरैना, भिंड, ग्वालियर, दतिया होते हुए ओंकारेश्वर पहुंचेगी।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक एकता के महान दार्शनिक, सन्त एवं संस्कृत साहित्यकार, अद्वैत वेदान्त के प्रणेता, सनातन धर्म के ओजस्वी शक्तिप्रदाता आदि गुरू शंकराचार्य के योगदान के सम्बन्ध में जन-जागरण करने तथा ओंकारेश्वर में शंकराचार्यजी की प्रतिमा स्थापित करने के लिये धातु संग्रहण हेतु 19 दिसम्बर से एकात्म यात्रा को प्रारम्भ किया गया है। एकात्म यात्रा चार स्थानों यथा- ओंकारेश्वर, उज्जैन, पचमठा रीवा एवं अमरकंटक से एकसाथ प्रारम्भ की गई है तथा 21 जनवरी 2018 को ओंकारेश्वर में समाप्त होगी। 51 जिलों से सांकेतिक धातु संग्रहण एवं जन-जागरण करते हुए यात्रा ओंकारेश्वर पहुंचेगी। 22 जनवरी 2018 को प्रतिमा की स्थापना हेतु भूमि पूजन, शिलान्यास तथा जन-संवाद कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।
भारतीय अस्मिता और राष्ट्रीय चेतना के आधार स्तंभ, सांस्कृतिक एकता और मानवमात्र में एकात्मता के उद्घोषक तथा अद्वैतवाद के अजेय योद्धा आदिशंकराचार्य ने मां नर्मदा के तट पर ज्ञान प्राप्त किया। सुदूर केरल से आठ वर्ष के बाल सन्यासी के रूप में वे 1200 वर्ष पूर्व दो हजार किलो मीटर की पदयात्रा कर गुरू की खोज में गुरू गोविन्दपाद के आश्रम में पहुंचे। वहां तीन वर्ष में ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भाष्य लिखा एवं अद्वैत मत की स्थापना के लिये सम्पूर्ण भारत की यात्रा पर निकल पड़े। जीव ही ब्रह्म है का उद्घोष करते हुए सम्पूर्ण भारत में सामाजिक विद्रुपता तथा पाखण्ड का नाश कर सामाजिक समरसता, एकात्मता एवं सहजता का ध्वज फहराया। आशुतोष शिव के रूप में अवतरित आदिशंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक सामन्जस्य एवं एक्य संस्थापन का महत्वपूर्ण कार्य किया।