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23 साल की उम्र भारत माँ के लिए हुए थे शहीद, जेल में लिखा था देशवासियों के लिए पत्र...


भगत सिंह 28 सितंबर 1907 को पैदा हुए और सिर्फ 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए. उससे पहले अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को जगाने के लिए 22 मार्च 1931 को उन्‍होंने साथियों के नाम देशभक्‍ति से ओतप्रोत एक पत्र लिखा था.

इस पत्र की हर लाइन में वतनपरस्ती झलकती है. उन्‍होंने लिखा कि-

‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि मैं कैंद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा हरगिज नहीं हो सकता’.

‘आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्‍ह मद्दम पड़ जाएगा या संभवत: मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्‍तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्‍यवाद या तमाम शैतानी शक्‍तियों के बूते की बात नहीं रहेगी’.

‘हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं उसका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्‍वतंत्र जिंदा रह सकता तब शायद उन्‍हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय कोई लालच मेरे मच में फांसी से बचने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्‍यशाली कौन होगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए’.

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