भारतीय कूटनीति से पाक को मात, POK में निवेश करने से दक्षिण कोरिया ने पीछे किये हाथ
भारत की कूटनीतिक ताकत ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है. दुनिया भर के देश पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में निवेश के अपने फैसले पर पुर्नविचार कर रहे हैं.
दक्षिण कोरिया की डायलिम इंडस्ट्रियल कंपनी लिमिटेड ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अपने निवेश पर पुर्नविचार करना शुरू कर दिया है. डायलिम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में झेलम के तट पर मुजफ्फराबाद में 500 मेगावॉट का चकोती हट्टियन हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट विकसित करने वाली कंपनियों के संघ की प्रमुख कंपनी है.
पाक अधिकृत कश्मीर में निवेश के फैसले को लेकर पुर्नविचार करने वालों में डायलिम कोई अकेली कंपनी नहीं है. डायलिम के साथ ही एशियन डेवलपमेंट बैंक, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन और एक्जिम बैंक ऑफ कोरिया ने भी पीओके में निवेश को लेकर असमर्थता जताई है. पीओके के सूचना मंत्री मुश्ताक अहमद मिन्हास ने इसकी पुष्टि की है.
इसके अलावा एक और कोरियाई वित्त कंपनी भी पीओके में निवेश को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है. ऐसे में पीओके का कोहला हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भी स्थगित हो सकता है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान बहुत ही आक्रामक रूप से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर पीओके में निवेश करने के लिए जोर दे रहा है. पाकिस्तान की कोशिश है कि इंफ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी प्रोजेक्ट पर दुनिया भर से निवेश पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में ले आया जाए. दोनों अविभाजित जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रहे हैं और भारत इन पर अपना हक जताता रहा है.
सेंटर फॉर चाइना एनालिस्ट और स्ट्रैटजी के प्रेसिडेंट जयदेव रानाडे ने इसे भारत के हित में करार दिया. कैबिनेट सचिवालय में एडिशनल सेक्रेटरी रहे रानाडे ने कहा, 'इन चीजों को हमें फॉलो करना चाहिए. होना ये चाहिए कि हम साउथ कोरिया और उसकी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित करें, उन क्षेत्रों में जहां हम कमजोर हैं. जैसे शिपबिल्डिंग.'
पैसे का सवाल
हालांकि पीओके में निवेश को लेकर पहले माहौल बना था. बाद में वित्तीय संस्थानों और कई देशों ने इस क्षेत्र में निवेश को लेकर अपने हाथ पीछे खींच लिए, इन सबके पीछे गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के लीगल स्टेटस का भी मामला है.
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा कि यह सब भारत के राजनीतिक प्रयासों का नतीजा है. यह हमारे लिए बहुत अच्छा है कि दुनिया के देश हमारी चिंताओं को समझ रहे हैं.
चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की घोषणा के बाद से भारत इस पर अपना विरोध जताता रहा है. भारत का कहना है कि चीन और पाकिस्तान भारतीय क्षेत्र में आर्थिक कॉरिडोर को लेकर कोई निवेश न करें, क्योंकि इस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है. भारत की चिंताओं पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.
चीन की भूमिका
दक्षिण कोरिया के अलावा चीन भी पाकिस्तान पर गिलगित बाल्टिस्तान के लीगल स्टेटस को लेकर दबाव डाल रहा है. चीन पाकिस्तान पर संविधान संशोधन के द्वारा पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान के स्टेटस को लीगल करने पर जोर दे रहा है. चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा पीओके और गिलगित बाल्टिस्तान से होकर जाता है. चीन यहां भारी मात्रा में निवेश करने जा रहा है.
चीन भी इस बात को समझता है कि भारत गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर अपना दावा जताता रहा है. साथ ही पाकिस्तान का कानून भी इस क्षेत्र को अपने संप्रभु क्षेत्र का दर्जा नहीं देता है. चीन के दबाव में ही हाल में नवाज शरीफ ने गिलगित बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत घोषित किया है.
इससे पहले एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 14 बिलियन डॉलर के डायमर-भाषा डैम को फंड करने से मना कर दिया था. यह प्रोजेक्ट अपनी शुरुआत से ही फंड की समस्या से जूझ रहा है. 2012 के बाद से ही कई सारे स्पांसर्स ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.