top header advertisement
Home - राष्ट्रीय << पीएम मोदी आज जाएंगे हाइफा, 99 साल पहले शहीद भारतीयों को देंगे श्रद्धांजली

पीएम मोदी आज जाएंगे हाइफा, 99 साल पहले शहीद भारतीयों को देंगे श्रद्धांजली


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को इजरायल दौरे के तीसरे व अंतिम दिन हाइफ शहर जाएंगे। मोदी हाइफा में 99 साल पहले शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे। बता दें कि पीएम मोदी हाइफा शहर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इजरायल की पीएम बेंजामिन नेतन्याहू भी हाइफा जाएंगे। मोदी भारतीय समयानुसार दोपहर दो बजे शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इसके बाद पीएम कुछ कंपनियों के सीईओ के साथ लंच भी करेंगे।

इजरायल की संसद को करेंगे संबोधित
पीएम मोदी को आज इजरायल की संसद को भी संबोधित करना है। इसके लिए वे सीईओ के साथ लंच करने के बाद नेतन्याहू के साथ सड़क रास्ते से तेल अवीव लौटेंगे। यहां संसद को संबोधित करने का कार्यक्रम है। 

जानें हाइफा शहर के बारे में
हाइफा इजरायल में समुद्र के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है. लेकिन इस समय ये शहर दुनिया के दो मजबूत लोकतंत्रों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी कड़ी बन गया है. 99 साल पुराने युद्ध में हिंदुस्तानी वीरता ने इन्हें और मजबूती से जोड़ा है. ये लड़ाई 23 सितंबर 1918 को हुई थी. आज भी इस दिन को इजरायल में हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जानें हाइफा युद्ध का पूरा इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया. हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया. हाइफा पर कब्जे के लिए एक तरफ तुर्कों और जर्मनी की सेना थी तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की तरफ से हिंदुस्तान की तीन रियासतों की फौज.

क्यों खास थी जीत
यह जीत और अधिक खास थी क्योंकि भारतीय सैनिकों के पास सिर्फ घोड़े की सवारी, लेंस (एक प्रकार का भाला) और तलवारों के हथियार थे. वहीं तुर्की सैनिकों के पास बारूद और मशीनगन थी. फिर भी भारतीय सैनिकों ने उन्हें धूल चटा दी. बस तलवार और भाले-बरछे के साथ ही भारतीय सैनिकों ने उन्हें हरा दिया. इसकी अगुवाई मेजर दलपत सिंह शेखावत कर रहे थे.

कुल 1,350 जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया था. इसमें दो जर्मन अधिकारियों, 35 ओटोमन अधिकारियों, 17 तोपखाने बंदूकें और 11 मशीनगनों भी शामिल थे. इस दौरान, आठ लोग मारे गए और 34 घायल हुए, जबकि 60 घोड़े मारे गए और 83 अन्य घायल हुए. बता दें कि हाइफा भारतीय कब्रिस्तान में प्रथम विश्व युद्ध में मारे 49 सैनिकों की कब्रें हैं.

बता दें कि 23 सितंबर 1918 की ये जंग घुड़सवारी की सबसे बड़ी और आखिरी जंग थी, जिसने इजरायल बनने का रास्ता खोला. 1918 में यही हाइफा यहूदी पहचान बना. 14 मई 1948 को इजरायल बनने के बाद इस नए देश में यहूदियों के लिए रास्ता खुल गया. 1948 में जब इजरायल का अरब देशों से युद्ध शुरु हुआ तो एक बार फिर यही हाइफा युद्ध का केंद्र बना था.

99 साल पहले हाइफा को कराया था आजाद
भारतीय सैनिकों ने पहले विश्व युद्ध के दौरान हाइफा शहर को तुर्की से आजाद कराया था। इस शहर पर तुर्की का 402 साल से कब्जा था। भारतीय जवान उस समय भाले और तलवार की मदद से ही तुर्की सैनिकों को परास्त कर दिया था। इस युद्ध में 44 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। 

Leave a reply