महाकाल मंदिर अकेला ऐसा मंदिर जिसके परिसर में प्रमुख 42 देवताओं के मंदिर
महाकाल मन्दिर लगभग साढ़े सात एकड़ में फैला विशाल परिसर संभवत भारत के किसी अन्य ज्योतिर्लिंग का नहीं
उज्जैन । श्री महाकाल का आंगन करोडों देवताओं का घर है। विश्व में संभवतः श्री महाकाल मंदिर अकेला ऐसा मंदिर है जिसके परिसर में प्रमुख 42 देवताओं के मंदिर है। महाकाल परिसर लगभग साढे सात एकड़ क्षेत्र में फैला है। महाकाल मंदिर जैसा विशाल परिसर संभवत: भारत में और किसी ज्योतिर्लिंग मंदिर का नहीं है। श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति है। उज्जैन पूरी दुनिया से इस अर्थ में अलग है कि आकाश में उज्जैन को जो मध्य स्थान प्राप्त है। वहीं धरती पर भी प्राप्त है। आकाश व धरती दोनों के केन्द्र बिन्दु पर उज्जैन स्थित है। महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूपों में लिया जाता है। इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की कालगणना होती रही है। प्राचीन श्री महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण 11वी शताब्दी में हुआ। श्री महाकाल पृथ्वी के नाभि केन्द्र पर स्थित दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जो दुनिया का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है। तंत्र की दृष्टि से भी इस दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग का बड़ा महत्व है।
श्री महाकाल एक परन्तु रूप अनेक। विश्व में अकेले श्री महाकाल है जो विविध रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर। कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल-फूल से सजते हैं राजाधिराज। विश्व में अकेले महाकाल है जिनके इतने रूपों में दर्शन होते हैं। हनुमान, शिव, देवी सरस्वती, अवंतिका, भद्रकाली, नवग्रह, शनि, राधा-कृष्ण, गणेश के मंदिरों से विभूषित यह परिसर आध्यात्मिक अनुभूति का पावन श्री महाकाल का आंगन है।
श्री महाकाल मंदिर परिसर में यूं तो छोटे-बडे अनेकों देवी-देवताओं के मंदिर हैं, परंतु परिसर में प्रमुख 42 मंदिर स्थापित हैं, जो निम्नानुसार हैं- श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर जो मंदिर परिसर के गलियारे में स्थित हैं। ऋद्धि-सिद्धी गणेशजी का मंदिर है जो लक्ष्मी नृसिंह मंदिर के आगे ही स्थित है। विट्ठल पण्ढ़रीनाथ मंदिर है जो मंदिर के गलियारे में स्थित है। श्री राम दरबार मंदिर गलियारे से कोटितीर्थ की ओर नीचे उतरने पर स्थित है। श्री अवंतिका देवी का मंदिर जो उज्जैन का एक प्राचीन नाम अवंतिका है। इसका मंदिर श्री रामदरबार मंदिर के पीछे स्थापित हैं। श्री चन्द्रादिप्तेश्वर मंदिर श्री रामदरबार मंदिर से आगे बढ़ने पर बायें हाथ पर स्थित है। श्री मंगलनाथ का मंदिर दन्रा्वदिप्तेश्वर मंदिर से आगे भूमिपुत्र मंगल शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान है। श्री अन्नपूर्णा देवी का मंदिर मंगलनाथ शिवलिंग से आगे स्थापित है। वाच्छायन गणपति महाकाल मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार, चांदी द्वारद् के पास पूर्व दिशा में प्रतिमा स्थापित है। प्रवेश द्वार के गणेशजी की मूर्ति चांदी द्वार के उपर गणेश प्रतिमा विराजित है।
इसी तरह महाकाल मंदिर परिसर में ही गर्भगृह में विराजित ज्योर्तिलिंग के रूप में भगवान श्री महाकालेश्वर विराजमान है जो चांदी द्वार से नीचे उतरने पर गर्भगृह स्थापित है। गर्भगृह में ही देवी पार्वती, श्री गणेश व श्री कार्तिकेय की रजत प्रतिमाएं है। गर्भगृह में ही दो अखंड नदादीप है। श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर है जो श्री महाकालेश्वर के ठीक उपर स्थित है। श्री नागचन्द्रेश्वर महादेव का मंदिर है जो ओंकारेश्वर महादेव के उपर यानी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर से तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी को ही खुलते है। नागचन्द्रेश्वर प्रतिमा के रूप में भी दर्शन होते है जो तीसरी मंजिल पर स्थापित है। सिद्धी विनायक मंदिर महाकालेश्वर प्रांगण में ओकारेश्वर मंदिर के सामने उत्तर दिशा की ओर स्थित है। साक्षी गोपाल मंदिर परिसर में सिद्धी विनायक के पास स्थित है। संकट मोचन सिद्धदास हनुमान मंदिर प्रांगण में उत्तर दिशा में स्थित है। स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर सिद्धदास हनुमान मंदिर के सामने स्थापित है।
महाकाल परिसर में ही बृहस्पतेश्वर महादेव मंदिर है जो प्रांगण के उत्तर में स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थित हैं। शिव की प्राचीन प्रतिमाएं त्रिविष्टपेश्वर महादेव मंदिर श्री महाकाल मंदिर के पीछे स्थित है। मां भद्रकाल्ये मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर से सटे उत्तरी कक्ष में है। नवग्रह मंदिर श्री महाकाल के निर्गम द्वार के पास स्थित है। मारूतिनंदन हनुमान मंदिर महाकाल परिसर के आग्नेय कोण में स्थित है। श्री राम मंदिर मारूतिनंदन हनुमान के पीछे स्थापित है। नीलकंठेश्वर मंदिर महाकाल मंदिर के निर्गम द्वार के पीछे स्थित है। मराठों का मंदिर नीलकंठेश्वर महादेव के पास स्थित है। इसका निर्माण देवास के नरेश द्वारा कराया गया था। गोविन्देश्वर महादेव मंदिर वृद्धकालेश्वर महाकाल मंदिर के समीप स्थित है। सूर्यमुखी हनुमान मंदिर कोटितीर्थ के प्रदक्षिणा मार्ग पर श्री महाकाल के प्रमुख द्वार के पास स्थित है। लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर कोटितीर्थ के उत्तर दिशा में स्थित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर यह महाकाल के गण तथा कोटितीर्थ के अधिष्ठाता है। यह एक महत्वपूर्ण मंदिर है। प्रदोष के दिन श्री महाकाल की संध्या-पूजा के पहले कोटेश्वर की पूजा की जाती है।
सप्तऋषि मंदिर महाकाल परिसर के पीछे की ओर सप्तऋषियों के सात मंदिर है। अनादिकल्पेश्वर महादेव मंदिर सप्तऋषि मंदिर के ठीक सामने है। श्री बाल विजय मस्त हनुमान मंदिर अनादिकल्पेश्वर महादेव के सामने स्थित है। यह एक चैतन्य देव स्थान माना जाता है। श्री ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर परिसर में ही स्थित है। श्री वृद्धकालेश्वर महाकाल ;जूना महाकालद्ध श्री बाल हनुमान मंदिर के पास स्थित है। पवित्र कोटितीर्थ महाकाल के आंगन का जल तीर्थ है। महाभारत इस तीर्थ का उल्लेख है। कोटितीर्थ के पवित्र जल से नित्य महाकाल का अभिषेक होता है।
भगवान श्री महाकाल की प्रतिदिन पांच आरती होती है। प्रतिदिन प्रातः भस्मार्ती होती जिसका समय 4 से 6 बजे तक होता है। भस्मार्ती का समय केवल श्रावण मास में परिवर्तन किया जाता है। इसी प्रकार महाशिवरात्रि पर्व पर भस्मार्ती दोपहर 12 बजे होती है। विश्वभर में एक मात्र श्री महाकाल है जिनकी प्रातः 4 से 6 बजे तक वैदिक मंत्रों, स्त्रोतपाठ, वाद्य यंत्रों, शंख, डमरू, घंटी घडियालों के साथ भस्मार्ती होती है। दद्दयोदय आरती प्रातः काल 7 बजे से होती है। इस आरती में समय पर परिवर्तन होता रहता है। तीसरी आरती प्रातः 10 बजे से नैवेद्य आरती होती है। शाम 5 बजे गर्भगृह में बाबा महाकाल का जलाभिषेक बंद रहता है और इस समय पूजन श्रंगार किया जाता है। इसके बाद शाम को संध्या आरती 7 बजे से की जाती है। इसके बाद मंदिर में शयन आरती रात्रि 10.30 बजे से होती है इसके बाद गर्भगृह के पट बंद हो जाते है। जो अगले दिन प्रातः 4 बजे खुलते है। आरतियों में समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है।