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जनजागृति के लिये 6 मार्च को मनेगा ग्लूकोमा दिवस



    उज्जैन । आगामी 6 मार्च को ग्लूकोमा दिवस (काला मोतिया) मनाया जायेगा। जनजागृति के लिये मनाये जाने वाले इस दिवस पर जिले में कई जागरूकता प्रसार कार्यक्रम आयोजित होंगे।

    मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.प्रदीप व्यास ने बताया कि यह रोग दृष्टि के चोर के रूप में जाना जाता है। नेत्र की दृष्टि के लिये यह खतरा पैदा कर देता है। सामान्यत: 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को, जिनके परिवार का ग्लूकोमा का इतिहास रहा है, उन्हें हो सकता है। यह नेत्र के अन्दर अधिक मात्रा में द्रव्य की मौजूदगी के कारण होता है, जो सामान्य स्थिति में रक्तधार में चला जाता है। यह द्रव्य ऑप्टिक नर्व नेत्र के प्रमुख भागों पर दबाव डालता है। ग्लूकोमा आंखों के क्रिस्टेलाईन लैंस का धुंधलापन है। यह लैंस के पार प्रकाश के रास्ते को रोक देता है और रेटिना पर फोकस करता है, जिससे दृष्टि धुंधली हो जाती है। हमेशा के लिये आंखों की रोशनी चली जाये, इससे बचने हेतु जितना जल्दी हो सके ग्लूकोमा का उपचार करा लेना चाहिये, क्योंकि देर करने पर आंखों की रोशनी में होने वाली कमी गंभीर हो सकती है। ग्लूकोमा का एकमात्र उपचार सर्जरी है, जो बहुत आसान हो चुकी है।

    विश्व में करीब 06 करोड़ 05 लाख व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, जिसमें 01 करोड़ 20 लाख हमारे देश में हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्वभर में जितने लोग अपनी आंखों की रोशनी खोते हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह ग्लूकोमा होता है। कई बार ग्लूकोमा के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। ऐसे में नियमित जांच द्वारा इस रोग के बारे में पता चलता है। ग्लूकोमा के सामान्य लक्षणों में प्रकाश स्त्रोत के चारों ओर रंगीन घेरा दिखाई पड़ना, सिरदर्द, आंखों में दर्द, धीरे-धीरे साइड का दिखाई देना कम होना और दृष्टि क्षेत्र सीमित होना, चश्मे का नम्बर जल्दी बदलना, ये रोग आनुवांशिक भी होता है। कई बार बच्चों में जन्मजात ही ये समस्या हो सकती है।

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