अपने लक्ष्य समूह की मानसिकता को समझकर एनीमिया के विरूद्ध अभियान संचालित किया जाए -संभागायुक्त डॉ.रवीन्द्र पस्तोर
निपी तथा लालिमा अभियानों पर संभाग स्तरीय कार्यशाला सम्पन्न
उज्जैन । कोई भी उद्देश्य तभी सफल होता है जब परिस्थिति तथा व्यवहार आधारित कार्य योजना तैयार कर अमल किया जाये। एनीमिया (रक्ताल्पता) के विरूद्ध सफलता हासिल करने के लिये जरूरी है कि निर्धारित लक्ष्य समूह की मानसिकता को समझकर अभियान संचालित करें। यह बात संभागायुक्त डॉ.रवीन्द्र पस्तोर ने सोमवार को सिंहस्थ मेला कार्यालय सभाकक्ष में आयोजित संभाग स्तरीय कार्यशाला में कही। एनीमिया के विरूद्ध संचालित लालिमा तथा नेशनल आयरन प्लस इनीशिएटिव कार्यक्रम पर आयोजित इस कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग के अलावा महिला एवं बाल विकास, आदिम जाति कल्याण विभाग एवं शिक्षा विभागों के संभाग स्तरीय तथा जिलों से आए अधिकारी उपस्थित थे।
कार्यशाला में संयुक्त आयुक्त विकास श्री प्रतीक सोनवलकर, संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ.निधि व्यास, एमआई कंसल्टेंट नईदिल्ली डॉ.ऋचा कंडपाल, राज्य स्तरीय एमआई कंसल्टेंट डॉ.विजय, डिबेट भोपाल से ब्रजकुमार दुगे, डीसी डिबेट एमआई निधि दुबे व अभिषेक सांकलीय उपस्थित थे।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए संभागायुक्त ने कहा कि एनीमिया के विरूद्ध अभियानों में लगे अमले को स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों में आहार उपलब्धता की जानकारी रखनी होगी। स्थानीय खाद्यान्न एवं अन्य आहारों से ही बेहतर रूप से एनीमिया के विरूद्ध लड़ाई लड़ी जा सकती है। सन्तुलित आहार आवश्यक है। इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिता या परिजनों के भीतर इस समझाइश को उतारा जाये कि एनीमिया से क्या नुकसान होते हैं। इससे कैसे निपटा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में आंगनवाड़ी तथा आशा कार्यकर्ता का रोल इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सरल सन्देश के लिये स्थानीय भाषा या बोली का प्रयोग करना भी अत्यन्त जरूरी है। आपके कहने का तरीका मायने रखता है कि आप किस तरह सामने वाले के हृदय में अपने सन्देश को ग्रहण कराते हैं। स्थानीय बोली का इस्तेमाल एक प्रभावशाली माध्यम होता है। इसके द्वारा एनीमिया के विरूद्ध आचार-विचार एवं खानपान को प्रभावी ढंग से प्रसारित किया जा सकता है।
4 विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका
एनीमिया के विरूद्ध अभियान में शासन के चार विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका समन्वित रूप से रखी गई है। स्वास्थ्य विभाग के साथ महिला एवं बाल विकास विभाग, शिक्षा विभाग तथा आदिम जाति कल्याण विभागों को शामिल किया गया है। ये सभी विभाग इस अभियान में महती रूप से दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग अन्तर्विभागीय समन्वय का काम करता है। आईएफए (आयरन फॉलिक एसिड) सिरप एवं टेबलेट, फॉलिक एसिड तथा एल्बेंडाझोल टेबलेट्स को उपलब्ध कराने के साथ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व नोडल शिक्षकों को टेबलेट, डोज, सावधानियों के बारे में प्रशिक्षण देता है, एडवायजरी कमेटियों का गठन करता है, फर्स्ट एड किट भी आंगनवाड़ी केन्द्रों व स्कूलों में उपलब्ध कराता है। किट में उल्टी, पेट दर्द, ओआरएस घोल के पैकेट तथा एंटीएलर्जिक टेबलेट के पैकेट रहते हैं।
महिला बाल विकास विभाग द्वारा स्वास्थ्य विभाग को हितग्राहियों की संख्या से अवगत कराया जाता है। कार्यक्रम प्रगति की समीक्षा भी की जाती है। आंगनवाड़ी केन्द्रों पर आईएफए की नीली, गुलाबी गोलियों, सिरप तथा एल्बेंडाझोल गोलियों के सुरक्षित रख-रखाव की व्यवस्था की जाती है। परियोजना अधिकारियों, पर्यवेक्षकों व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम के सम्बन्ध में उन्मुख किया जाता है।
शिक्षा विभाग अपनी शालाओं में पंजीकृत विद्यार्थियों की संख्या उपलब्ध कराता है। इसके अलावा बैठकों में समीक्षा, शिक्षकों को कार्यक्रम के सम्बन्ध में उन्मुख करने के अलावा अन्य सहयोगी कार्य किये जाते हैं। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आश्रमों तथा शालाओं में आयु के आधार पर आयरन की निर्धारित खुराक दी जाती है। साथ ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता को रिपोर्ट बनाकर दी जाती है।
स्कूलों में आयरन फोलिक एसिड के अनुपूरण हेतु उपस्थिति रजिस्टर में मंगलवार को उपस्थित विद्यार्थियों को आईएफए अनुपूरण के बाद हरे स्कैच पेन से गोला बनाकर चिन्हांकित किया जाता है। यदि मंगलवार को नहीं हो सका तो आगामी दिवस में चिन्हांकन होता है। शालाओं में टेबलेट देने से पूर्व आवश्यक बातों को विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों को जरूर बताया जाता है। इसमें आईएफए की गोली खाली पेट नहीं खाने, गोली चबाकर नहीं खाने तथा पानी के साथ निगलकर खाने की समझाइश दी जाती है। इसके साथ ही किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर आईएफए की गोली का सेवन नहीं करने और कोई दुष्प्रभाव होने पर स्वास्थ्य केन्द्र से सम्पर्क करने की सलाह दी जाती है।